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आइए आज हम सभी असीम कुमार पाठक उर्फ "पथिक " द्वारा विरचित कविता "उन पुष्पों से डर लगता है " का पाठ करते हैं। उन मुलायम कलियों को उन पुष्पों से डर लगता है उन पुष्पों को बिखरा देख कलियों को सदा डर लगता है उनके नन्हें नन्हें पल कहीं उन पुष्पों की तरह बिखरे ये राह अकेली मंजिल मिले दो पल आँखों भी निखरे दो पल वे तुम्हें प्यार करते दो प्रेमी संग ले याद करते वे तुम्हें प्यार करते चले तो उन पुष्पों के रंग यूं भरते|| उन पुष्पों की खूबसूरती को देख वह प्रेमी मुस्कराते हैं दिन रात एक कर कीर्ति को देख उन पुष्पों डर लगता है सम है और उसकी धड़कन अब तो तू है उसका दर्पण बाता दो पल दो पल जान है क्या कर दूँ उस पर अर्पण मैं नन्हा सा मेरा दिल शीशे सा कवि मित्रों के शहरों में शामिल उन पुष्पों को बिखरा देख कलियों को सदा डर लगता है दो पल का यह जीवन पर खुद को खुशहाल कर दिया उन पुष्पों की तरह बिखरे सबमें ख़ुशी ही बिखेर दिया