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is katha ko jo sunega uske saare kary awashy hi purn honge
is katha ko jo sunega uske saare kary awashy hi purn honge
अत्रत्रीत केश्पति वारप्रस कथा भारत वर्ष में एक प्रताप्य और गानी जाजा राच्य करता था, वो निच्च गरीबों और ब्राह्मणों के सहायता करता था, ये बात उत्ती राणी को जरा भी अच्छी नहीं लगती थी, वो ना गरीबों को तान देती, ना ही भ� तो राणी महल में अकेली थी, उसी समय ब्राह्मणों देव साधु वेश में राजा के महल में भिक्षा के लिए थे और भिक्षा मांगी, राणी ने भिक्षा देने से इंकार किया और कहा, ये साधु महराज, मैं तो दान कुनने से तंग आ गई हूं, मेरे पती सारा धन र तुम तो बड़ी विचेत्र हो, धन संतान तो सभी चाहते हैं, उत्रों और लक्ष्मी तो पापी के घर भी होने चाहिए, यदि तुम्हारे पास अधिक धन है, तो भूकों को भुजन दो, प्यासों के लिए प्याओं गनवाओ, मुसाफिरों के लिए धर्मशालाएं खु परन्तु राणी पर उप्देश का कोई प्रभाव ना पड़ा, वो बोली, महाराज, आप मुझे कुछ न समझाएं, मैं ऐसा धन नहीं चाहती, जो हर जगा पाटती चुन। सादु ने उत्तर दिया, यदि तुम्हारी ऐसी इख्षा हैं, तो तथास तो, तुम ऐसा करना क तो सादु महाराज वहाँ से अलोग हो गए। सादु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए, राणी को केवल तीन रहस्पति वार ही बीदे थे, के उसकी समस्त धन संपत्ती नस्च हो गए। भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा, तब एक दिन राजा ऐसा कहते राजा पर्देश चला गया, वहाँ वो चंगल से लकडी काट कर लाता और शहर में बेचता, इस तरह वो अपना जीवन भ्यतीत करने लगा, इधर राजा के पर्देश चाते ही राणी और दासी दुखी रहने लगे। एक पर जब राणी और दासी को साथ दिनों तक बिना भोजन के रहना पड़ा, तो राणी ने अपनी दासी से कहा, हे दासी, पासी के नगर में मेरी बेहन रहती है, वो बड़ी धन्वार है, तो उसके पास जा और कुछ लेया, दासी थोड़ी बहुत गुजरबसर हो जाए राणी की बेहन को अपनी राणी का शनदेश किया, लेकिन राणी की बड़ी बेहन ने कोई उत्तर नहीं दिया, जब दासी को राणी की बेहन से कोई उत्तर नहीं मिला, तो वो बहुत दुख्री हुई और उसे क्रोज भी आया, दासी ने वापस आकर राणी को स कथा सुनकर पुझन समाप्त करके वो अपनी बेहन के घर आयी और कहने लगी, हे बेहन मैं व्यहस्मतिवार का व्रत कर रही थी, तुम्हारी दासी मेरे घर आयी थी, परन्तु जब तक कथा होती है, तब तक न उठते हैं और ना ही बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली, पहले तो राणी को विश्वास नहीं हुआ, पर देहन के आगरख करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा, तो उसे सचमुझ अनाज से भरा एक ख़ड़ा मिल गया, ये देख दासी को बड़ी हैराणी हुई, दासी राणी से कहने लगी, हे राणी, जब हमको भोजन नहीं मिलता, तो हम व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों ना उनसे व्रत और सथा के विधि पूछ लिजाएं, ताकि हम भी व्रत कर सकें, तब राणी ने अपनी बेहन से � विश्म भगवान के केले के जड़ में पूजन करें, तथा दीपं करें, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें, इससे ब्रहस्तिती देव प्रसन होते हैं, व्रत और पूजन विधि बताकर राणी की देहन अपने घर को लौट गई, साथ दिनों के बाद जब गु इस बाद को लेकर दोनों बहुत दुखी थें, चुकि उन्होंने व्रत रखा था, इसलिए व्रहस्तिती देव उनके प्रसन थे, इसलिए वे एक साधारन व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन तासी को दे गए, भोजन पाकर तासी प्रसन हो� पर अधुराणी फिर से पहले की तरह आलश्चे करने लगी, तब दासी बोली, देखो राणी, तुम पहले भी इस प्रकार आलश्चे कर दी थी, तुम्हे धन रखने में कस्ठ होता था, इस कारण सभी धन नस्ठ हो जा, अब जब भगवारव्यक्ति की कृपा से धन मिला ह भूखे मनुश्यों को भूजन कराना चाहिए, और धन को शुब कारियों में खर्च करना चाहिए, जिससे तुम्हारे कुल का यश पढ़ेगा, सर्व की प्राप्ती होगी और पित्र भी प्रसन होगी, दासी की बात मानकर राणी अपना धन शुब कारियों में खर्च करने रहस्पतिवार का दिन था, एक आएक उसने देखा कि निर्जिनवन में एक साधम पकट हुए, वो साधु वेस में स्वेम रहस्पति देवसा थे। लकड़ हारे की सामनी जाकर बोले, ये लकड़ हारे, इस सुनसान जंगल में तु चिलता मगनी क्यों बैठा है? लकड़ ह तुम्हारी पत्नी ने व्रहस्पतिवार के दिन व्रहस्पति भगवान का निरादध किया है, जिसके कारण रुच्छ होकर उन्होंने तुम्हारी ये तशा करदी। अब तुम चिलता को दूर करके मेरे कहने पर चलो, तो तुम्हारे सब कस्ट दूर हो जाएंगे और भग कथा के पश्चात अपने सारे परिवार और सुनने वाले प्रेम्यों में अम्रित वा प्रसाद बांट कर आप भी क्रहन करो, ऐसा करने से भगवान तुम्हारी सब मनुकामनाएं पूरी करेंगे। सादु के ऐसे वचन सुनकर लकड़ हारा बुला, ए प्रभु मुझे लकड़ी बेचकर इतना पैसा नहीं मिलता जिससे भूजन के उपरांच कुछ बचा सकु, मैंने रात्री में अपने इस्तिको व्याकुल देखा है, मेरे पास कुछ भी नहीं है जिससे मैं उसकी खब जिससे तुम भली भाती भूजन कर लोगे तथा व्रहस्पति देव की पूजा का सामान भी आ जाएगा। इतना कहतर सादु अंतरध्यान हो गये, धीरे धीरे समय व्यातीत होने पर फिर वही व्रहस्पति वार का दिन आया, लकड़ हारा जंगल से लकड़ी काट कर किसी श व्रहस्पति वार का दिन आया तो व्रहस्पति वार का व्रत करना भूल गया। इस कारण व्रहस्पति भगवान नाराज हो गये। उस दिन उस नगर में लाजा ने विशाल यग्य का आयोजन किया तथा शहर में ये घोषणा करा दी कि कोई भी मनुशे अपने घर में भू राजा की आग्या नथा शहर के सभी लोग भूजन करने गये लेकिन लकड़ारा कुछ देर से पहुँचा इसलिए राजा उसको अपने साथ घर लिवा ले गये और ले जाकर भूजन करा ही रहे थे कि राणी की द्रिश्टिव उस पूटी पर पड़ी जिस पर उसका हार ल कारागार में डलवा दिया गया जब लकड़ारा कारागार में पड़ गया और वो बहुत दुखी होकर विचार करने लगा कि ना जाने कौन से पूरु जन के करम से मुझे ये दुख प्राप्त हो रहा है और उसी साधु को याद करने लगा जो इसी जंगल में मिला था उसी आप चिन्ता मत कर ब्रह्यस्पति वार के दिन कारागार के दर्वाजे पर चार पैसे पड़े मिलेंगे उनसे तु ब्रह्यस्पति देव की पूजा करना तेरे सभी कर्स्च दूर हो जाएंगे ब्रह्यस्पति वार के दिन उसे चार पैसे मिले लकड़ारा ने कथा कही उसी राणी का हार उसी कूटी पर लटका है अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मैं तेरे राज्य को नक्ष करदूंगा। इस तरह राजवी के स्वपनों को देखा राजा प्रातकाल उठा और कूटी पर हार देखता लकड़ारा को बुला कर छमा मांगी तथा लकड़ारा को य नगर में पहले से अधिक बाग, तालाब, कूएं तथा बहुत से धर्मशाला, मंदिर आधी बन गये थे। राजा में पूछा ये किसका बाग और धर्मशाला है तब नगर के सब लोग कहने लगे ये सब राणी और बांधी के हैं तो राजा को आश्यल हुआ और घुसा भ इसलिए तू दर्वाजे पर जाकर खड़ी हो जा। आके अनुसार दासी दर्वाजे पर खड़ी हो गए। राजा आये तो उन्हें अपने साथ लिवा लाई। तब राजा नी प्रोज करके अपनी राणी से पूछा, ये धन तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ। तब उन्ह और रोज व्रत किया करूँगा। अब हर समय राजा के रुपटे में चने की डाल बन्धी रहती, तसा दिन में सी बार कहानी कहता। एक रोज राजा ने विचार किया कि चलो अपनी बेहन के हाँ हुआए। इस तरह रिश्चे कर राजा घोड़े पर सवार हो, अपनी बेह लो, हमारा तो आज भी मर गया है, इसको अपनी कथा की पड़ीश। परन्तु कुछ आदमी बोले अच्छा कहो, हम तुमारी कथा भी सुनेंगे। राजा ने डाल निकालिये और जब कथा आदमी हुई थी, कि मुर्दा हिलने लग गया। और जब कथा समाप्त हो गई, तो किसान बोला, जब तक मैं तेरी कथा सुनूंगा, तब तक चाहर रईया जोत लूँगा। जा, अपनी कथा किसी और को सुनाना। इस तरह राजा आगे चलने लगा। राजा के हट ते ही पैल पछाड खाकर गिर गए और किसान के पेट में बड़ी चोर से दर्प होने किसान के पास गई और उससे बोली की, मैं तेरी कथा सुनूंगे, तू अपनी कथा मेरे खेट पर चलकर ही कहना। राजा ने बुढ्या के खेट पर जाकर कथा कही, जिसके सुनते ही वो वैल उठखड़े हुए तथा किसान के पेट का दर्प भी बंद हो जा। राजा अपनी बेहन के घर पहुचा, बेहन में भाई की थूब महमाणी की, दूसरे रोज प्रातर काल राजा जगातुं वो देखने लगा कि सब लोग भूजन कर रहे हैं। राजा ने अपनी बेहन से कहा, ऐसा कोई मनुश्य है, जिसने भूजन नहीं किया हो, मेरी ब्रि वो ऐसा कहतक देखने चली देई, परन्तु उसे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिसने भूजन नहीं किया हो, अताव वो एक कुमहार की घर गई, जिसका रड़का भीमार था, उसे मालंग हुआ कि उनके ऐहां तीन रोज से किसी ने भूजन नहीं किया है। राणी ने अ� राजा ने अपनी बेहन से कहा, हे बेहन, हम अपने घर को जाएंगे, तुम भी तैयार हो जाओ। राजा की बेहन ने अपनी सास ते कहा, सास ने कहा, हाँ चली जा, परन्तु अपने रड़कों को मती जाना, क्योंकि तेरे भाई के कोई ओलाद नहीं है। बेहन ने अपने � राजा ने अपनी राणी से कहा, हम निर्वन्सी हैं, हमारा मुझ देखने का धर्म नहीं है, और फिर कुछ भोजन नहीं किया। राणी बोली, हे प्रभु, वियस्पति देव ने हमें सब कुछ किया है, वो हमें ओलाद अवश्य देखे। उती राज को वियस्पति देव � राणी के गर्व ते एक सुन्दर पुत्र पैदा हुआ। तब राजा बोला, हे राणी, इस्तुरी बिना भोजन के रह सकती है, पर बिना कहे, नहीं रह सकती। जब मेरी बेहन आवें, तो उसके कुछ मत कहना। राणी ने सुनकर हा कह दिया। जब राजा की बेहन ने ये राजा की बेहन बोली, भाभी, मैं इस प्रकार न कहती, तो तुम्हें अलाज कैसे होती। ब्रह्यस्पति देव ऐसे ही हैं, जैसे जिसके मन की कामणाएं हैं, सभी को पूर्ण करते हैं। जो सद्भावना पूर्वक ब्रह्यस्पति वार का ब्रत करता है, तथा कथा पढ उसके कोई संतान नहीं थी, उसकी इस्तिरी बहुत मलींता के साथ रहती थी, वो इस्तान न करती, किसी देवता का पूजन न करती, इसके ब्राह्मन देवता बड़े दुखी थे। बिचारे बहुत कुछ कहते थे, किल्टू उसका कोई परिराम न निकला। भगवान की कृ पात्साला के मार्ध में टाल जाती, तब ये जौं स्वार्ण के हो जाते, लोटते समय उनको बीन कर घर लियाती। एक दिन वो बालिका सूप में उस सोने के जौं को फटक कर साफ कर रही थी, कि उसके पिता ने देख लिया और तहा, हे बेटी सोने के जौं के लिए सोने का सूप मिला। उसे वो घर लियाए और उसमें जौं साफ करने लगी, परन्तु उसकी माँ का वही ढंग रहा। एक दिन की बात है, वो कन्या सोने के सूप में जौं साफ करने लगी, परन्तु उसकी माँ का वही ढंग रहा। एक दिन की बात है, वो कन्या सोने के सूप में ज सूप में जौं साफ करने लगी, परन्तु उसकी माँ का वही ढंग रहा। एक दिन की बात है, वो कन्या सोने के सूप में जौं साफ करने लगी, परन्तु उसकी माँ का वही ढंग रहा। एक दिन की बात है, वो कन्या सोने के सूप में जौं साफ करने लगी, परन्तु उसक अपने पिता की राजकुमार ने पाते सुनी, तो वो बोला, मुझे आपकी कृपा से किसी बात का दुख नहीं है, किसी ने मिरा अपमान भी नहीं किया है, परन्तु मैं इस रड़की से विवाह करना चाहता हूँ, जो सोने के सूप में जौं साफ कर रही थी। ये सुनके � ब्राह्मण जेवता राजकुमार के साथ अपनी कन्या का विवाह करने के लिए तैयार हो गये, तथा विधी विधान के अनुसार ब्राह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ हो गया, कन्या के घर से जाते ही, पहले की भाते उस ब्राह्मण जेवता के घर में गरी� खा और अपनी मा का हाल कुछा, तब ब्राह्मण ये सभी हाल कहा, कन्या नी बहुत सा धन देकर अपनी पिता को विदा कर दिया, इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय सुख पूर्वग व्यकीद हुआ, कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया, ब्राह्मण फिर अपनी कन्या के � तो अपनी मा को समझाने लगी, हे मा, तुम प्रातर काल प्रथम स्नानाधी करके विश्णु भगवान का पूजेन करो, तो सभी दर्वितरकार दूर हो जावेगी, परन्त उसकी मा ने एक बाद भी नहीं मानी, और प्रातर काल उठकर अपनी पुत्री के बच्चों का जू उसके निकाला और स्नानाधी करके पाठ करवाया, तो उसकी मा की बुध्धी ठीक हो गई, फिर प्रत्येग ब्रहस्पतिवार को वो प्रत रखने लगी, इस ब्रत के प्रभाव से उसके मा और पिता बहुत ही धन्वान और पुत्रवान हो गए, और ब्रहस्पति जी के प्र जी के प्रभाव के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव जी के प्रभाव