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The role of parenting in the development of a child
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The role of parenting in the development of a child
अपनी सेल्फ इंट्रो इस्पेक्ट की जर्नी को हम आज आगे बढ़ाते हुए परेंटिंग के विशे में कुछ बाते करेंगे। परेंटिंग एक प्रोसेस है जिसमें माता पिता अपनी केपेसिटी, नौलिज, स्किल्स और अक्टिविटीज से बच्चों की मेंटल, फिजिकल, इमोशनल और सोचल डेवलप्मेंट में इंवाल्ब रहते हैं। बच्चों की परवरिष में परेंट्स का बहुत बड़ा रॉल होता है। इस प्रीचर लीदर दाजी ने अपनी लेटेस रिलीज बुक दविज्डम ब्रिज में एक एफरिकन प्रोवर्ब को यूज़ किया है। इत टेक्स विलिज तो रेज चाइल्ड मतलब बच्चे की � वे सब मिलकर चाइल्ड को टुगैधरनेस की फिलिंग का एहसास करवाते हैं। टुगैधरनेस means connectivity जिस से बच्चे को एक सिक्योर्ड, एक प्रोटेक्टेड अन्वाइनमेंट मिलता है। सिक्योर्ड के कारण उसका आत्मविश्वास बढ़ा हो रहता है। किसी भी चाइल के जन्म लेने से बड़े होने तक के प्रोसेस में, पैरेंट्स कितना मैचूर्ड वे में involved हैं, इसका बहुत impact पढ़ता है। बच्चों के छोटे बड़े फैसलों के लिए कितने open minded हैं, कै वो इतने sensitive होते हैं कि बच्चों की इच्छाओं को respect कर सकें, उनकी needs और requirements को recognize करें। आजकल mostly parents अपने बच्चों को special feel कराते हैं, उनके special talents को highlight करते हैं, achievements को as pride लेते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं है, यह बहुत अच्छी बात है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि उनके failures के लिए judgmental भी हो जाते हैं। अगर बच्चा ठीक से perform न कर पाए, तो उसके ऊपर added pressure बन जाता है। Parents का प्यार अपने बच्चों के लिए unconditional होता है, पर बच्चा अपने achievements को ही उनके प्यार की वज़ें समझ लेता है। तो parents की responsibility बनती है कि वे बच्चे की future पे focus करें और उसके efforts के लिए खुश हों। यहाँ पर महाभारत का एक प्रसंग यादाता है, जब श्रीकरेशन अर्जुन के साथ कहीं जा रहे थे और रास्ते में उन्होंने देखा कि एक गाई अपने बच्चडे को दुला रही है, अपनी जीप से चाट रही है, पर बच्चडे की skin छिल गई है, उसमें से bleedinging हो रह एक माता का अपनी संतान के प्रती मोह है, एक माता अपनी संतान को इतना प्याब कर रही है कि उससे उसका जखमी ही बन गया है, जो कि बच्चे के लिए तकलीव दे है, इस कहानी से हमको यह सीख मिलती है कि हमारा संतान के प्रती प्रेम बहुत अच्छी बात है, होना चाहि उसका सामना करे ना कि उससे घवरा कर पीछे हट जाए, कई बार ऐसे भी देखा गया है कि अपने पैरेंट्स को प्लीज करने के चकर में बच्चे उनसे बातें चुपाने लगते हैं, अपनी मिस्टेक्स चुपाने लगते हैं, कित्ती बातें शेयर नहीं करते हैं या सही स लाहा नहीं मिलती है, कई बच्चे तो अंतर मुखी हो जाते हैं, वो अपने ही अंतर वापनी बातों को दबा लेते हैं, जिसके बहुत घातक परिणाम होते हैं, क्योंकि ठीक एडवाइज नहीं मिलती है, बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शिकार हो जाते हैं या उन्हे बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शिकार हो जाते हैं, जिसके बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शिकार हो जाते हैं, जिसके बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शिकार हो जाते हैं, जिसके बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शिकार हो जाते हैं, जिसके बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शिकार हो जाते हैं, जिसके बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शिकार हो जाते हैं, जिसके बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शिकार हो जाते हैं, जिसके बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शिकार हो जाते हैं, जिसके बच्चे लोग सेल्फ एस्टी एस्टीम के शिकार हो जाते हैं, जिसके बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शिकार हो जाते हैं, जिसके बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शिकार हो जाते हैं, जिसके बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शिकार हो जाते हैं, जिसके बच्चे लोग सेल्फ एस्टीम के शि करते हैं, उनकी अक्टिविटीज को मॉनिटर करते हैं, पर बच्चे को लगता है कि पैरेंट्स अपने काम में बिजी हैं, यह बच्चों के डिसीजन वेकिंग पावर को बहुत बढ़ाता है, उनका नैचरल डवलेपमेंट होने लगता है, क्योंकि बच्चा इंडिपें� नहीं करपाता है, तो वो नैचरल कोर्स में अपने पैरेंट्स के पास जाता है, उनकी हैल्प लेता है. अल्टिमेटली बच्चे के साथ धैरे रखना बहुत ज़रूरी है. पैरेंट्स के साथ ज़रूरी के पास ज़रूरी के पास ज़रूरी के पास ज़रूरी के पास ज़रूरी के पास ज़रूरी के पास ज़रूरी के पास ज़रूरी के पास ज़रूरी के पास ज़रूरी के पास ज़रूरी के पास ज़रूरी के पास ज़रूरी के पास ज़रूरी क