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सपना , असीम कुमार पाठक उर्फ पथिक-2023-8-18-14-0-39

सपना , असीम कुमार पाठक उर्फ पथिक-2023-8-18-14-0-39

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आइए आज हम सभी असीम कुमार पाठक उर्फ "पथिक " द्वारा विरचित कविता " सपना" का पाठ करते हैं। सपना असीम कुमार पाठक वो सपना सपना नही है, जो पलभर में टूट जाए वो अपना अपना नही है, जो पलभर में छूट जाए एक ऐसा सपना जो न टूटे. वे सपना ही तो अपना है एक ऐसा अपना जो न छूटे, वोअपना ही तो सपना है क्योंकि सपने ही सच होते हैं या टूटने के लिए होते है खुली आँखों से देखे सपने , ही प्रतिपल पूरे होते हैं वरना सपने तो सपने हैं , जो टूटने के लिए होते है रात में देखे सपने हो पूरे, तो पूरे सपने ही अपने है

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