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आइए आज हम सभी असीम कुमार पाठक उर्फ "पथिक " द्वारा विरचित कविता " जन " का पाठ करते हैं। छन-छन-छन की माया में, सन-सन- सन के साया ने बन-छन-ठन के लाया है, पल पल उनकी छाया है सब जन जन की छाया है, हर पल उनको पाया है संसार ही उनकी माया है, सुमधुर स्वरों में गाया है सब जन जग में आया। सब जन जन को पाया जब असु तन में आया, तब असु तन को भाया जन पंक्ति मन राग है, तन कीर्ति धन मान है जग प्राण यज्ञ नाज है , कर कीर्ति प्रण ज्ञान है सारा जीवन है सुमन जैसी , सारी धरा उपवन जैसी जीवन सुमन तो वह उपवन है, इस जमीं में एक सुन्दर तन है
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