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khooni haveli (enhanced) audicity

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ये कहानी चंदनगड की एक ऐसी हवेली की है, इसे क्हुए हवेली के नाम से सब जानते थे। गाउन सबको पता था कि वहाँ भूतों का ढेरा हैं, इसलिए वहाँ आजपास कोई भी नहीं जाता था। यहाँ बग्गिया चराने वाले भी उसके पास नहीं भटकते थे, जानवर भी दुबकतर भागाते थे। इस हवेली में एक बहुत ही जालू शिकारी रहता था, वह जानवरों का शिकार करते करते तभी इनसानों को भी मार देता है। जब लोगों को यह बात पता चली, तो सारे गाँवालों में उसे मिलकर मौत की खाट उतार दिया है। लेकिन बात यहाँ फत्मन नहीं हूँ। उस शिकारी की आत्मा उसी हवेली में वपस आ गई और उसकी तुकी तस्वीर में जाके छुब दियी। जब उस शिकारी के या हवेली के मिर्चे मांगनेश वाले उसके रिष्टेदार वहाँ आये, तो उस जालिन शिकारी की आत्मा ने सबको मौत की खाट उतार दिया है। और सत्य कटें वेसिल बाहर रास्ते कर दिंग दिये, ताकि सब लोग समझ जाएं कि शिकारी अब लौट आया है। इस बात को कई साल बीच गया है। अब वहाँ ना तो कोई हवेली थी ना कोई शिकारी। इतने साल बीच जाने के बाद सब कुछ तहस नहीं सो गया था। बस कुछ पत्थर और खूटी हुई दिवारे उस हवेली की मौदल की बता रही थी। लेकिन गाउन अलोग का मानना है कि जिसकी कुंदली में योग है वो हवेली उसको नजर आती है। ये बात कहां तक सही हमावस की रात थी। बारिश भी बहुत सोरो की हो रही थी। शहर से कुछ लोग चंडनगर के रास्ते शहर जा रहे थे। बारिश भी ज़्यादा तेज़ थी कि सामने कप कुछ नहीं दिख रहा था। उनकी गाड़ी उस खूणी हवेली के सामने से गुज़री। सामने प ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते ज़्यादा ते बड़िये सी मुच्चे और हाथ में तलवाद और एक हाथ में पुराने जमाने की बंदल जैसे कोई महराजा रहा नहीं गया तो सागर में पूछी लिया ये जो तस्रील है कोई महराजा है क्या? क्या थाट से खड़े है? और बाबा क्या तुम यही हवेली में रहते हो और वो भी अकेले? वो बोरे ने सागर की आफ़ों में आखे मिला कर कहा हा ये इस हवेली का मानिक का तहीं सालों पहले इसकी मौत हो चुकी है मैं यहां देखभार के लिए आता हूँ अद बारिश की वज़र से मैं भी नहीं � देखा कि तुम सीलियां से उतरतर आ रहे थे तु पिर यह दर्वादा किसने खोला वो बोरा जैसे चौक गया लेकिन उसने जवाब नहीं दिया उसने कहा चलो मैं तुम सबको कमरा दिखा देता हूँ वो लोग सीली से जैसे सामने गये ऐसे लगा कि कोई उन्हें देख रह जाये शायद सबका वहम था या सच पता नहीं वो थोड़े डर गया थे वो सब सीलियों के बवल में एक कमरे में लेके गया वो लोग बहुत ठक चक्ये थे ड्राइवर गारी में ये सोता रहा तो उसको किसी ने नहीं बिलाया उसको आदत होती है लेकिन हम तो गारी में बे वो इतने ठक चक्ये थे कि लेटते ही आँख लग गई जबह नहीं थी लेकिन बाहर पहुँच खंड थी और अंदर पाफी गर्म था पंगा शायद आदी राट का समय हुआ था शीरीस एक दुम से चिलाने लगा बाकी दोस्त जग गये शीरीस को कोई सपना आया था शीरीस को खंजा के शांत किया लेकिन फिर बाद में विल्कुल वही सपना रमेश को भी आया है और सावर को भी उसके बाद सब डर गया है इतना तो समझ आ गया था कि एक ही सपना सब तो नहीं आ सकता कुछ तो बरबर नहीं बाहर निकलने के लिए आवास लगाई तो उस बोड़ क्या करें डर के मारे सब को बड़ी जोरो की फ्यास रग रही थी सापने पानी लाया था जो एक भूटी ही खाली हो गया शिल्की से बाहर आवास लगाई लेकिन कोई जवाब नहीं आया उनका ट्राइबर उनको सामने से दिख रहा था लेकिन उसको उनकी आवास नहीं जा � कि क्या होने वाला था ये कोई नहीं जानता था लेकिन वो किसी बुरी जगा फ़स चुके थे ये समच आ गया था पूरा एक दिन और रात बिताने के बाद उनकी रूम का दर्बादा फ़रता है बाहर पूरा सन्नाटा फैला था जो वोड़ा उनको मिला था उसका भी कोई � सब लोग उपर चले गए वहाँ से कूदने का सोचा येकिन इतना उच्छा था कि हिम्मत ही नहीं हो पाई ये सब क्या होवा ये सोचके वो आपस में जगरने लगे बाद में सबी नीचे आ गये सब वो बहुत प्यास लगी थे नल था लेकिन उसमें पाई नहीं आ रहा था प्यास लगी होती है सुबा फिर से सब लोग पाई की पोज में निकलते हैं लेकिन अच्छानट साधर का प्यास लगी था कि उसमें पाई नहीं आ रहा था लेकिन उसमें पाई नहीं आ रहा था कि उसमें पाई नहीं आ रहा था कि उसमें पाई नहीं आ रहा था कि उसम प्यास लगी था कि उसमें पाई नहीं आ रहा था लेकिन उसमें पाई नहीं आ रहा था कि उसमें पाई नहीं आ रहा था कि उसमें पाई नहीं आ रहा था कि उसमें पाई नहीं आ रहा था कि उसमें पाई नहीं आ रहा था कि उसमें पाई नहीं आ रहा था कि उसमें पाई � पून चाटने से उनकी प्यास कुछ खम सी गई लेकिन अब भूँक की वज़र से जान निकल रही थी रात वो चपी थी शिरियस और रमेश में नजाने शैतान समा गया था उनके अंदर वो दोनों सावर का ठूत पड़े और उसको पाटने लगें पूनी ठेल चालू हो गय वो उसको काट रहे थे और खुन को पी रहे थे सावर की जान दची ही कितनी थी इतने दिन का भूँका दोनों से बच नहीं पाया सावर की मौत हो गयी थी शिरियिस और रमेश अब उसके पास दैटके उसका मास खाने लगे जैसे कोई भेलिया मरे हुए जानवर का मास नोज रहा है वो मन्जर बहुत ही डरावना दिख रहा था खुन पीना मास खाके वो दोनों आदम फूर मन चुके थे अब दोनों को शांती की नील लाई सुबा सारी हवेली में सरी हुए मास की गंद सहल चुकी थी सुबा उठ कर फिर से दोनों ने शावर की लास में से खाना चालु किया जैसे उनके अंदर का इंसान मर चुका था रात होते हुते अब उस लास में कीले दूने लगे थे अब वो शीरीस और रमेश के बगल के कमरे में जाके सोगए लेकिन प्यास और भूग उनका पीछा कहा छोड़ने वाली थी अब दोनों ने एक दूसरे का शिकार करने की सोचे रमेश ने चलाकी से दरबाजे के बाहर कढ़ा रहे कर पीछे से शीरीस की उपर वार किया शीरीस का सिर्फ किसी नारियल की तरह पट चुका था और जमीन से खुन ही खुन था रमेश जानवरों की तरह पर चाड़ता रहा अभी शीरीस की लास का मास खाता हैवानियत अपने चरम पर दी शैतान उसके उपर हावी हो चुका था शैतान ने रमेश को कोई सोचने का मौका नहीं लिया वो अपनी भूक मिटा के अब आराम करने लगा सुबा होने वाली थी पहली किरन हवेली के अंदर पहुंची और दर्वाजा खुल गया हवेली का जैसे सालों से बंद पढ़ा था रमेश अब ठीसे चल नहीं पा रहा था बाहर निकल कर देखा तो बारिश लुप चुकी थी उसने उनकी गारी देखी वहां तक जैसे तैसे चल कर गया दर्वाजे पे जोर से हांत मारा एड राइवर राइवर हरबडा के उफता है जिजजी साहब दर्वाजा खुल के बा वो दोनों उस हवेली में और जैसे ही गारी की किल्की से बाहर देखता है पूरा शौंक जाता है वहाँ कोई हवेली नहीं थी सिर्फ उस पूटी हुई दिवाले थी और मिट्टी के देहर थे सब कुछ समझ के परे था कुछ पावलों के जैसे मैसोस करने लगा था रमीश तभी हम लोग यहाँ इतने दिन से पसे थे उस हवेली में तुने हमको ढूना क्यों नहीं द्राइवर शंकर चिला के ड्राइ� अब माना शंकर का खुण सूप गया था उसके साथ पिछले 4 दिन से जो वो रहा था वो क्या था सपना या कोई छलाबा हवेली गय और उसके दोनों दोस्त का क्या हुआ वो तो बस शंकर ही जानता था भूद बर्क के तरह एक जबा जंग गया फिर भी नहीं रहा थ और उसकी मौत हो जाती है उस हवेली में क्या हुआ था उनके साथ क्या हुआ दोस्त कहा गया किसी को कोई पता नहीं चला इस सारे राज शंकर की मौत के साथ ही दपन हो जुकेते हैं

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