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dactor shahb

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Daacto saab voiced by Sanjay Anand

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स्टोरी बॉक्स विद संजी अनन्द दोस्तु आज मैं आपको सुना रहा हूँ अपनी एक दिखी कहानी, इसका नाम है डाक्टर सहाब पुराना लक्नो एक बड़ी खोपसूरत चगा है, छिरव इसलिए नहीं कि वहाँ पर पुरानी मेहराबो वाली इमारते है मुगले खाने से महती लजीज खाने की दुकाने है या गलियों के नुकर पर सजी चाय की दुकाने लक्नो खोपसूरत अपनी लोगों से है, इस शहर का हर आदमी किसी अफसाने का किर्दार लगता है इसके पार कहने सुनने के लिए सैक्रो अफसाने है, अगर आप गुजरेवा वक्को जीना चाहते हैं तो एक बार लक्नों, खास कर कि पुराने लक्नों की गलियों में जुरूर आईएगा क्योंकि इनी गलियों में मुझे मिले थे डॉक्टर खान, जिने सब लोग डाक्टर साहब कहते थे इनकी कहानी आज मुझे अच्छानक यादा गई, क्यूं? बताओंगा, आगे चलका डॉक्टर खान जो थे, नबे से उबर उमर थी उनकी किसी जमाने में किंग जॉर्च मेडिकल कॉलेज में, जो कि अभी उनिवर्स्थी हो गई है, वह वहाँ पर हेड़ आफ़नी डिपार्टमंट हुआ करते थे नाग कान गले के उंदा डॉक्टर माने जाते थे, 30-35 साल पहले मेडिकल कॉलेज से रेटार हो गया थे, उसके बाद उनने अपनी क्लिनिक खोल ली, गोला कंस बारुत खाने के बास, किस्चिन कॉलानी से थोड़ आगे, लाल मस्जित वाली सड़क पर, वहीं पर उनका मत हरी हो जाती थी, लेकिन हाथ में वो शिफा थी, कि पुरानी से पुरानी बिमारी भी तीन खुरात में ठीक हो जाती थी, फीस बहुत कम थी, और यही वज़े थी, हर छोटे हर तबकी की लोग उनके मतब पर जमा रहते थे, और उनकी तमाम फटकार सुनते जाते थे, और थोड़ा किसी आकर मुस्कुराते रहते थे, और कहीं गलती से किसी मरिज ने कह दिया, डाक्टर साहड, कल एक काइम की दवा मिस हो गई थी, तो कहते, खड़े हो ज तुमको जब दवा खानी नहीं है, तो अपना पैसा और हमारा वक्स क्यूं बरबात कर रहे हो भाई, जाओ नहीं है दवा, चलो पंड़िज जी इनको बाहर निकालिये पंड़िज जी उनके यहां देख रेख करते थे, मेरी यादाश में पुरी लक्णों में कभी किसी ने उन्हें डाक्टर साहड नहीं कहा था, सब उन्हें डाक्टर साहड भी कहते थे, डाक्टर खान सफेद कोट पैने हुए थे, वो जो प्लास्टिक की पटियों वरी जो देखते रहते थे, और सामे एक बड़ी सी मेच थी, जिसपर दवा रखी रहती थी, बगल में एक चोटा सा केबिन था, जिसपर हरे रंका परड़ा पढ़ा रहता था, वो मरीज से हाल-चान लेते जाते, और कागरस पर कुछ-कुछ दर्श करते जाते, और फिर वही परचा उठा कर कैबिन के अंदर चले जाते, और वहां से खटर-पटल की आवाजें आती, जब बहार आते, तो हाथ में कुछ तीन-चार पूरियां होती, मरीज को बस एक बार समझाते थे, कि कैसे खानी है, अगर किसी ने तूसरी बार पूछ लिया, तो एक बार आँख बंद करके, एक गहरी सांच छोड़ते, जैसे बड़े इरिटीट हो गए हो, अफ़वा, एक बार गर्दन जुखा कर पतली कमानी वाली चश्मी के उपर से झांकते, और फिर कहते, अब बिलकोर ही बोखान हो गया, हाँ, कान बंद हैं ये समझ में आता है, कि दिमाक से भी काम लेना बंद कर दिया है, एले-बेले सब चले आते हैं, अरे सफेद वाली पीस नहीं ह अगर किसी ने दाये हाथ बढ़ाया, तो कहेंगे बाये हाथ दिखाओ, और फिर कहेंगे खास के दिखाओ, खासो जड़ा, वो आदमी खासेगा, अरे बेवाकूफ मूँपर खासा आए, बत्तमीज, उदर खास नालाइक, वो आदमी फिर से खास था, और ये उसके सीने में आला, यानि के स्टेतोस्कोप लगा कर बड़े मानीखेर अंदास में गौर्श से सुनते हैं, जैसे अंदर हो रही दो लोगों की बाते वो चोरी से सुन रहे हो, खान साहब का गुशा ऐसा था, कि जैसे सावन की दूब आता जाता रहता था, पर उनके गुशे में एक लाड था, एक आजीब सापनापन, लोग सुनते जाते और मुस्कराते जाते, फीस बहुत कम थी, लिहासा उनके पास उस सबके के लोग भी आते थे, जैसे रोज कमा पर कहने वाले कहते हैं कि खान साहब यूँ तो कभी नहीं मुस्कराते थे, लेकिन हाँ, अगर उनके मतब में कोई खुब्सुर मौतरमा आ गई, तब लोग देखते हैं कि डॉक्टर साहब की मुस्करात कैसी होती है, और शरम भी. हाँ, अच्छा तो मतलब गले में दर्ध है, अच्छा इदर देखिये जारा खासी है, खासी है, वो नजाकत से खासती है, अरे ऐसे नहीं जोर से खासी है, कि इदर मेरी तरफ मूँ करके, अरे नहीं डॉक्टर साहब, यह कैसी बाते है, अरे नहीं नहीं देखिये, हमें मरस पकरना होता है, तो आप भी जिसक खासी है, मैं जड़ा सा मैसूस करना चाहता हूँ, ताकि मैं उसी हिसाब से आपको दवा दे सकूं, हाँ, आप खासी है, लोग कहते हैं कि खातीनों के लिए बहुती नरम दिल था खान साब का, बहुती पिलपिला, लेकिन मरदों पर बस चले, तो दवा के पहले दो जापड़ी मार दे, मुझे तो हला कि इसमें शक है, मुझे तो बस इतना लगता है कि उमर ज्यादा थी, इसलिए थोड़ा चक मेरा दाया कान बंद था, ऐसा नहीं कि मुझे सुनाई नहीं दे रहा था, पर ऐसा लग रहा था कि जैसे पानी चल गया हो, यहाँ हवाई जहाज में बैठने पर यहाँ पहारी जगर पर जाने पर जैसे कान बंद हो जाते हैं, वैसे ही कुछ आलम पर्मणिन्ट सा हो गया वैसे ही कुछ इमारते हैं, वहीं पर आगे जाकर डाक्तर साब का मतब है, यानी कि क्लिनिक है मैं क्या देखता हूँ कि लगरी के पुराने दर्वाजे, उंची चथ, चौड़ी दिवारे, और दिवारों पर बने कुछ शिश्य वाली अलमारियां जो शायद बहुत वर्षों से खुली नहीं थी और उनसे जहंकती हुई दवाएं पड़े से कमरे में एक तरफ कुछ बेंच बड़ी थी, जिन पर कुछ मरीज कान पर हात रख कर बैठे हुए थे और दूसरी तरफ टाक्टर साहब, एक पुरानी लगरी की मीस पर पीछे बैठे हुए थे उनके बगल में पड़े स्टूर पर कोई मरीज था, जिसे वो देख रहे थे तो खएर मैं मरीज की पीछे जाकर अपनी नंबल का इंदजार करने लगा कान दिखाओ जारा डौक्टर साहब ने स्टूर पर बैठे बिचारी शक से कहा, तो वो उस तरफ घूंगने लगा, वो बोले अरे यार दूसरा वाला कान दिखाओ, ये तो देख लिया है, आजीब हो यार तुम वो बिचारा सक्पका गया, दूसरी तरफ घूंग गया डौक्टर साहब ने फिर पुछा, परचा लाए हो दिखाओ, ये लिजे अरे ये नहीं यार पुराना वाला, क्या आगनी हो यार तुम, कहते होई गुस्से से उसके हाथ से परचा ले लिया मैंने गौर किया कि एक एक करके जो भी आदमें उस स्टूर पर बैठता था, डौक्टर साहब बिना डांटे, उसको दवा नहीं देते थे, जैसे कहेंगे, खड़े हो, वो आदमें खड़ा हो जाता अरे पलट के खड़े हो भाई, मेरी तरफ कान करो, बिलको सनाई नहीं दे रहा है क्या, वो जलाते हुए कहते, एक एक करके लोग उनके पास चाते रहे, और किसी न किसी बहाने से डांट खा कर आते रहे, ये सब देखकर मुझे हासी भी आ रही थी, और दर भी लग रहा � आपके पास चाकर बैठूंगा, तो बिना डांट खाए वापस आओंगा, इसकी तरकीद मैंने यूँ निकाली, कि मैंने सोचा, कि जब मेरा नमबर आएगा, तो मैं बिलकोंच चुपचाप जाकर स्टूल पर बैठ जाओंगा, और जो भी कहा जाएगा, उससे पहले कं� पर्चा दिखाओ, तो मैं पहले ही पता कर लूँगा, कि कौन सा पर्चा पुराने वाले डाक्टर का, या उससे पहले वाले डाक्टर का, अब मैं मन ही मान में बिलकोंच तयार था, मेरी पूरी तयारे थी, मुझे ऐसा लगा, कि आपतो मुझे कोई तांट ही नहीं सकता मुझे बारी बारी खिसकते वे स्टूल पर पहुंचते, ढांट खाते और चले जाते, मेरे लिए अब बिमाई से ज़्यादा ये चेलन्च इंपॉर्टन्ड हो गया था, कि मुझे ढांट नहीं खानी है डाक्टर साहब से, बस, खेर मैं तयार था, मैं बैठा रहा अब मुझसे पहले एक आदमी बचा था, मैं अब नजीग से डाक्टर खान को देख रहा था, उनकी सफीद भामे, उनकी हाट की दीली पढ़ चुकी खाल, उनकी तजुर्वेकार, आखें और नाग पर चड़ा हुआ गुस्सा। स्टूबर बैठे हुए आदमी की चांच करते हुए बोले, कितने टाइम से दर्द है, वो बोला, ये डाक्टर साथ बस ये समझ देजे की अभी यही कोई, मतलब जब सी ये थंड बरना शुरू हुई है, मतलब की जैसे गुलाबी मौसम जब से, ओ गुलाबी हरा मौसम वो हासी छूट गई, वो आदमी घबरा के बोला, ये ही देट नहीं ना समझ देजिए राक्टर साथ, डाक्टर साहब ने उसकी खुब क्लास लगई, खर अल्ला अल्ला करके मेरा नंबर आ गया, पुरी तरह से मैं कॉंफिलेंट था, अरे भाई हमें किसका तरह है, पुरी तयारी थी अपनी, अब मेरी लिए खेल हो गया था की ढांट नहीं खानी बस, और मैं पुरी तरह से तयार था, मैं जाकर आईसा से गोल स्टूल पर � मैं कुछ नहीं बोलूंगा, तब तक जब तक वो मुझे कुछ नहीं बोलेंगे, वो पिछले वाले मरीज के पर्चे पर कुछ लिखते रहे, फिर उन्होंने नोट पैट से वो पुराने वाले पेशन का पर्चा फाड़ा, और एक तरफ रखे, कई पन्नों की उपर रख � मेरे दिमाग ने कैलकुलेशिन शुरू कर दी, कि क्या ये बिलकुछ सही समय है, ये बताने की कि तकलीफ क्या है? सैकिन के सोमे हिस्से पर मेरे दिमाग ने चोड़ा घटाया, इसका कहीं कुछ और मत्तब तो नहीं, कि डानपड़ जाए, अगर फिर यही जबाब आया, कि जब वो कह रहे हैं कि बताईए, तो फिर तकलीफ बतानी चाहिए न? जानी आप मौका बिलकुछ सही था, तो मैंने उनके बताईए का जवाब देना शुरू किया, मैंने कहा, और डाक्टर साब कुछ दिनों से इस कान में ओफो वो मेरी बात काटते हुए बोले, अरे नाम बताईए, और इस तरह मैं खुछ से लगाई शर्द हार गया. आप इस किस्से को दस बारा साल हो गये हैं, आज कई सालों के बाद गोला गंज के उसी मतब के सामने से गुज़रा तो, अब डाक्टर साब का मतब वहाँ नहीं था, उस जगए पर अब कोई नई उची आमारत आ गयी है, उनके बारे में लोगों से पूछा, तो पता चला जब वो डान्ट थे थे, तो उसमें एक अपनापन होता था, जिसे कोई घर का एक बड़ा बजुल्ग डान्ट रहा हो, जो इस बात पर नराज है, कि दवा क्यों नहीं खाई वक्त पर, वो डान्ट थे थे, तो लोग मुस्कुरा थे थे, वो जढड़कते भी थे, तो लो जैसे येतीम हो गया हो। दोस्तों, ये थी कहानी डाक्टर सहब की। अमीद है, आपको ये कहानी पसंद आई होगी, तो कुछ लबस अगर लिख देंगे, तो अच्छा लगेगा। करते के लिए करते के लिए करते के लिए करते के लिए करते के लिए करते के लिए करते के लिए करते के लिए करते के लिए करते के लिए करते के लिए करते के लिए �

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