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नियमित अभ्यास्थ करने से प्रकरता वढ़ती है। नमस्काद दोस्तों माइन ग्रो में आपका स्वागत है। आज की वीडियो बहुत ही महत्पून और घ्यान वर्धर है। वीडियो का परदर्श रीतेश और उसकी बेटे के असपास रूमता है। कम पढ़ा लिखा रीतेश कैसे कठनेयों को पार करके सफलता को प्यात करता है। जानिये कैसे रीतेश अपने को एक साधारन बिल्लर से बायो टर्मोलोजिस्ट में बढल लेता है। रीतेश एक महिमती परंपरावादी वेक्ति थे। उनके लिए जिन्दगी का मतलब इच मिट्टी और मज़दूरों को समाधना था। तकनेकी और गजेश उनके लिए अन्जान थे। बच्चपन नहीं इसको छोड़ देने के साथ ही उनकी सिच्छा लोगी रह गई थी। एक दिन लिटेश को डाक्टर ने बताया कि उसके बेटे अमन को एक दूलब जेनेटिक विमारी है। डाक्टरों का कहना था कि इसका एलाज संगव है लेकिन बहुत जतिल और महिना है। यह सुनकर लिटेश की दुनिया ही घिल गई लेकिन लिटेश ने धैरी और सहस मनाय रखा और अपने बेटे अमन को बचाने की जित ठान लिया। उनके अंदर बेटे अमन को बचाने की एक जौला बनकर जल गई। उन्होंने अमन के डाक्टर से एलाज के बारे में हर बार जानता था कि बेटे अमन का होंसला बढ़ाने के लिए उन्हें मज़वूत रहना बहुत जरूरी है। ज्यान हासिव देरी ने कंप्यूटर सीखना शुरू कर दिया। कंप्यूटर के सब्द कोस उनके नए साथी बन गए। धीरे धीरे सब्द समझ में आने लगे सब्द वाकि बन गए। और रीतेश को पढ़ना भी आ गया। रात दिन महिनत करके रीतेश ने बाय टरक्नलोजी के मूल भुत सिधान्तों को समझना शुरू कर दिया। दाक्तरों के साथ चर्चा और परिछन करने लगे। मशीनों को संचालिज करने लगे यहां तक कि खुद छोटे छोटे प्रियूप करने का कौशल हासिल कर दिया अमनता इराज सफल रहा, अमन के इराज की सफरता के वक्त रीतेश के खुशे के आशु भै निकले। जो एक काम्यादी के आशु थे। रीतेश ने सागित कर दिया कि सीखने की कोई उम्रे नहीं होती है। अगर जिद हो तो पहार को भी सरकाया जा सकता है। आज रीतेश अपने बिटे के साथ एक सपल बायर टेक्नोलोजी कमपनी चलाते हैं, जो दूला बीमारियों के इराज पर सोध कर रही है। रीतेश की ये कहानी हमें यही सीख देती है कि दिमाग एक चमतकार है। इसे जगाओ, सीखो, मेहनत करो, दिमाग को जगा कर अब व वीडियो आपको अच्छा लगा हो, तो वीडियो को सब्सक्राइब कर लिजे, धन्यवार, जैहिए।

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