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Thursday Special | Yuva-vani Karyakram | Ft. Era Porwal | 29-02-2024

Thursday Special | Yuva-vani Karyakram | Ft. Era Porwal | 29-02-2024

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आकाश्वानी का इंद्धार केंड्र Medium Wave 462.96 M यानी 648 KHz वर ये आकाश्वानी का इंद्धार केंड्र है इस समय शामके 5 बजे हैं अब आरंब होती है हमारी सांधे कालीं सभा सभा के आरंब में लीजिए सुनिये कारिक्रम यूववानी आकाश्वानी का इंद्धार केंड्र यानी 648 KHz वर ये आकाश्वानी का इंद्धार केंड्र है आकाश्वानी का इंद्धार केंड्र है यानी 648 KHz वर ये आकाश्वानी का इंद्धार केंड्र है आकाश्वानी का इंद्धार केंड्र है यूववानी सुनने वाले हमारे सभी शोताओं को इरा और मादवी का नमसकार यूववानी सुनने वाले हमारे सभी शोताओं को इरा और मादवी का नमसकार दोस्तो आज है एक बहुत खास दिन आज है 29 फेब 2024 और जैसा कि आप सब जानते हैं हर चार साल में एक लीपियर आता है जो फर्वरी महीने में एक एक्स्ट्रा दिन होता है इसी दिन को कई संस्कृतियों में काफी विशेश माना जाता है तो साथियों सबसे पहले आये जानते हैं कि लीपियर होता क्या है लीपियर एक ऐसा वर्ष होता है जिसमें 366 दिन होते हैं जबकि सामानी वर्ष में 365 ही दिन होते हैं ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्रत्रि को सूरी की परीक्रमा करने में वास्तव में 365 और आधा दिन और लगता है तो इसलिए ये लीपियर एक दिन एक्शा रहता है तो एरा, जब इस साल में एक एक्शा दिन है तो क्या तुम्हें लगता है कि तुमनें इस एक्शा दिन में कुछ यूस्फुल, कुछ नया किया है ऐसा तो मुझे नहीं लगता है, लेकिन आज का दिन हाँ वाकिरी बहुत ही खास है और चली इसी खास दिन को और भी खास पनाते हैं गीत के साथ डेफिनिटली, आईए सुनते हैं हमारे शोका पहला गीत करवाली आत्मा था, जबाबों से भरा है जरा दूप को बादलों ते लडने दो, इस दिल को दो बंगोना करने दो हाँ कैसी ये हसी है, जो होटों पे फस्ती है जरा गंव पे तो फासले बढने दो, इस दिल को तो गुझ गुझ करने दो लागे जाके ये खुली की शरारत कैसी देखो, लागे जाके देखो तो फुल के भागे, वह बुंगे बदामत कैसे देखो, लागे जाके देखो तो दिल अच्छी एक जगा है, एक चुला सा लगा है, उसे खुल के सोपींगे बरने दो ख्यालों सा खुल को उड़े देदो, लागे जाके ये खुली की शरारत कैसी देखो, लागे जाके देखो तो खुल के भागे, वह बुंगे बदामत कैसे देखो, लागे जाके देखो तो खुल के भागे, वह बुंगे बदामत कैसे देखो, लागे जाके देखो तो जड़ जड़ फुल जड़ी, तू है रॉष्णी के फुवारों से, फुल फुल फुल फुला है तू तू है सुर्वई, तेरा गन्दर्वार से, बस लुखार का है तू सबाली आसमा था, जवाबों से भरा है, सरा जूप को बादलों से लड़ने दो इस दुल को सुभन को ना करने लो लाकि लाके देखो, इस चारा कैसे देखो, लाकि लाके देखो फुल से भागे हो, ये बढ़ा गन्दर्वे देखो, लाकि लाके देखो जागो ग्राहक जागो, उपभुक्ता मामले विभाग भारत सर्कार दोरा जन हिप में जारे मादवी तुम पूछ रही थी आज का दिन खास क्यों है, तो मैं ये तो भूली गई कि आज का दिन चार साल में एक बार आता है, और आज ही के दिन हम शो कर रहे हैं, कितने लक्की हैं ना हम बिल्कुल इस से जादा प्रड़ाक्टिव यूटिलाइजिशन क्या हो सकता था आज के दिन का, बिल्कुल बिल्कुल, वैसे सुबह का मन्मोहक वातावरण, हवा में थंडक की कमी और पंचियों की मीथी चहचहहट ये संकेत दे रही है कि गर्मी का मौसम भी धीरे धीरे इतनी गर्मी रखनी रगे, गर्मी आई नहीं है लेकिन हमारे पसीने पहले चूट रहे हैं बिल्कुल बिल्कुल, भारत में गर्मी का जो मौसम है वो मार्च से मयी तक रहता है वैसे तो बिल्कुल सही कहा, गर्मी का मौसम जहां कुछ लोगों के लिए आम की मीथी खुश रहे है और इस दोरान सूर्य की किरने प्रत्वी पर सीधी पढ़ती है इसकी कारण प्रत्वी का तापपान थोड़ा बढ़ जाता है बिल्कुल सही कहा, गर्मी का मौसम जहां कुछ लोगों के लिए आम की मीथी खुश रहे है और इस दोरान सूर्य की किरने पढ़़ा बढ़ जाता है इसकी कारण प्रत्वी का तापपान थोड़ा बढ़ जाता है इसकी कारण प्रत्वी का तापपान थोड़ा बढ़ जा के लिए ये तीवर धूप और गर्मी से राहत पाने की जद जहत का भी समय होता है सही बात है, आज हम इस मौसम और इन दिनों की पहलूं पर चर्चा करेंगे साथ ही आपको बताएंगे कि कैसे आप इस गर्मी का भरपूर आननद ले सकते हैं और इसी के साथ साथ खुद को सुरक्षित भी रख सकते हैं पिर्कुल तो फिर देव किस बात की वैसे मादली सबसे पहले ये बताओ कि गर्मियों के मौसम के बारे में सबसे अच्छा तुम्हे चाहता है मुझे तो आम के आम और गुट्रियों के दाम दोनों ही पसंद है हजाग के लावा वैसे मुझे गर्मियों में आम का सीजन का इतना इंतजार रहता है रंगीन फूलों की बहार, लंबे दिन ये सब मुझे बहुत पसंद है और सही बताऊं तो मेरा मन तो ये होता है कि पूरे दिन बस पानी में पढ़ी रहो बिल्कुल सही कहा माधी तुमने ऐसे गर्मी के मौसम में गर्मी की छुट्टियों का मजा ही कुछ और होता है फैमिली के साथ बाहर जाना, नानी के घर जाना, बुआ के घर जाना, है ना इसका मजा ही कुछ अलग होता है न? बिल्कुल, बिल्कुल, बिल्कुल, गर्मी के छुट्टियां, घूमना, फिरना, परिवार के साथ समय विताना मुझे तो बच्पन के गर्मी के दिन यादा जाते हैं, जहां छुट्टियां लगती थी और स्विमिंग, घूमना, खेलना, मस्ती, क्या मज़े के दिन होते थे? बिल्कुल सही कहा, वहीं आज हमें गर्मियों के मौसम में धूप में जाना पड़ता है, काम करना पड़ता है, ओफिस जाना पड़ता है, आओ, जाओ, से बात सुस्ते है, और गर्मी का मौसम अपने साथ वही जैसा कि हमने बात की कई चुनौतियां लेके आता है, क्योंक साथ ही इस सीजन का भरपूर आननद दिले, तो साथ ही गर्मी के मौसम में जब भी आप धूप में बाहर निकलते हैं, तो छाता, टोपी, या कौटन के कपड़ों का इस्तिमाल करें, साथ ही परियाप्त मातरा में पानी पीते हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हा हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، ہاں، अचर मादवी, जब हम इस विशय पर बात कर ही रहे हैं, तो क्यों न हम हमारे श्रोताओं को इसकी हिस्ट्री के बारे में भी बता दे थोड़ा सा? बिरकुल क्यों नहीं, वर्तमान कमबोडिया का प्राचीन नाम कमबुज था, और वहां खमेर सामराज्य था, खमेर भाषा में अंकोर शब्द का अर्थ राजदानी होता है, और अंकोर शब्द संस्कृत के नगर शब्द से बना है, इसलिए अंकोर का नाम महा नगर परियतन स्थल भी है, अंकोर नगर में अवशेष श्याम वीट नामक आदुनिक नगर के दक्षिन में जंगलों और खेतों के बीच है, अंकोर शेत्र में करीब हजार से अधिक चोटे बड़े मंदिर है, इन मेंसे कई मंदिरों का पुनर नर्मान भी हुआ है, अंकोरवा प्राचीन कंबुज की राजधानी है, मान्यताओं के अनसार ये भी कहा जाता है कि राजय का संस्थापक कंबोडियन ब्राम्मन था, जिसका नाम वहाँ के संस्क्रितिक अभिलेक में शामिल है, नौवी शितब्दी में जैवर्मा तृतिय कंबुज का राजा बना और उस के निर्मान के संबंद में कंबुज साहित्य में कई खटनाई भी मिलती है, अंकोर्थौम नगर में तीक उसके ठीक बीच में एक विशाल शिव मंदिर था जो कई शिखरों से मिलकर बना हुआ था, इनमें समाधी में बैठे शिव की मुर्तियां स्थापित थी, आज का अ जो अगर हम देखें कि जो इतनी पुराणी चीजें होती हैं, वो जैसे जैसे समय आके बढ़ता है, खंडर बन जाती हैं, तो यही हुआ अंकोर्थौम के साथ भी, तुम्हें पता है इस चीज में सबसे ज़्यादा अलग बात क्या थी, कि इस मंदिर की जो शीला चित्रे जो प्रमुख घटनाओं के बाद विराद एवं कमबद वद भी चित्रन किया हुआ है, फिर अगले शीला चित्र में भगवान शीराम स्वन्द म्रिक के पीछे दोड़ते हुए दिखाये गए हैं, सुगरीव से शीराम की मितरता, बाली सुगरीव का युद, अशोक वा� पर तुम्हें पताएं, इस अंकुरवाट मंदिर की गल्यारों में, मैंने कहीं पढ़ा था की ततकालीन समराथ, बाली वामन, स्वर्ग नरक, समुद्र मन्थन, देव दानव, युद, महाभारत, हरिवंश पुरान, इत्यादी की भी संवंधित अवशेष यहां देखने क बाली वामन, स्वर्ग नरक, समुद्र मंदिर की गल्यारों में, मैंने कहीं पताएं, इस अंकुरवाट मंदिर की गल्यारों में, मैंने कहीं पताएं, युद, महाभारत, हरिवंश पुरान, स्वर्ग नरक, समुद्र मंदिर की गल्यारों में, मैंने कहीं पताएं, इत्या तो हमारे श्रुताओं से हम बस यही कहेंगे कि आप लोग भी एक बार ये मंदिर जाएं, विजित करें, देख कर आएं और हमें इमेल के माध्यम से बचाना भिलकुल भी न भूलें कि आपको कैसा लगा ये विजिनेस्को वर्ल्ड हेरेटिज साइट, आगे बढ़ते हुए सुनते हैं हमारे कारिक्रम का अगला गीत प्यारे हम को भी है, प्यारे तुम को भी है, तो ये क्या फिल्सिले हो गए? बेवफा हम नहीं, बेवफा तुम नहीं, तो क्यों इतने फिले हो गए? चलते, चलते, कैसे ये फास्टले हो गए? क्या पता, कहा, हम चले? प्यार हम को भी है, प्यार तुम को भी है, तो ये क्या फिल्सिले हो गए? बेवफा हम नहीं, बेवफा तुम नहीं, तो क्यों इतने फिले हो गए? चलते, चलते, कैसे ये फास्टले हो गए? क्या पता, कहा, हम चले? दुनिया जो पूछे, तो क्या हम करें? कोई ये हम को समझा गए? खेस लगी दूपल में तूट गए? खेस लगी दूपल में तूट गए? खेस लगी दूपल में तूट गए? शीशें ते के क्या नब वाले? जाता है कोई क्यों, सपनों को ठुकरागे? पाएगा ये दिल क्या, किसी को बता के? चलते, चलते, राख हम बिन चले हो गए? बुछ गए दिले चार के? प्यार हम को भी है, प्यार तुम को भी है, तो ये क्या सिलसेले हो गए? दूब गया है किसे दर्द में दिल, हाथो भरी है अब आँखे, तन्हायों की जो रुते आ गई, उज्ञी हुई है सब लाहे, सोचा था हम पाएंगे, दोनों इच मंगे हो, राहे जो बगली तो तुम ही बता दो, चलते, चलते, हम कहा सापने हो गए, हो गए, कहा राज से, प्यार हम को भी है, प्यार तुम को भी है, तो ये क्या सिलसेले हो गए, बेवका हम नहीं, बेवका तुम नहीं, तो क्यों इतने जिने हो गए, चलते, चलते, कैसे ये खासले हो गए, क्या बता कहा हम चले, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये क्यों इतने जिने हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, प्यार हम नहीं, बेवका हम नहीं, तो ये खासले हो गए, उठता जुआ तो कैसे छपाए, अखियां करें जी हदूरी, मांगे हैं तरी मंदूरी, कच्रा सिया है, जिन रंग जाए, तेरी कसूरी रैन जगाए, मन मस्त मगन, मन मस्त मगन, बस तेरा नाम दहरा, मन मस्त मगन, मन मस्त मगन, बस तेरा नाम दहरा, भूल चाहे भी तो भूल न पाए, मन मस्त मगन, मन मस्त मगन, बस तेरा नाम दहरा, मन मस्त मगन, मन मस्त मगन, मन मस्त मगन, मन मस्त मगन, बस तेरा नाम दहरा, जोगिया जोगर लगा के, बखरा रोगर लगा के, इश्पती भूमी रोज जड़ा है, उठिता धुमा का कैसे चुपाए, मन मस्त मगन, मन मस्त मगन, बस तेरा नाम दहरा, मन मस्त मगन, मन मस्त मगन, बस तेरा नाम दहरा, चाहे भी तो भूल न पाए, मन मस्त मगन, मन मस्त मगन, बस तेरा नाम दहरा, मन मस्त मगन, मन मस्त मगन, बस तेरा नाम दहरा, कोड़ के धानी, प्रीत की चादर, आया तेरे शहर में, राजा चरा, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, जीने मरने का वाद आता चम्रा, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया 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जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, दुनिया जमाना, छोड़ा बसाना, वो रहनुमा, मेरे रहनुमा, वो तेरे नामर्षा, अब कोई भी लंग नहीं, पढ़ करते की सो किता, में सो दपा, दिल्दा, दिल्दा, आगे रक्ती भर सा जग सागा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा, दिल्दा,

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