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Sugust 3 1996 Mathura

Sugust 3 1996 Mathura

Vrindavana Das

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ज्यानंजन सलात्य स्तत्तुमुनमिलितं जेनतस्मयिरुषिभु मुन्चाकल्पतरुभ्यस्य कृताशिन्दुभ्यवच पतितानं पामनिभ्यो वैश्णविभ्योना नमो महाबदन्नाय कृष्णप्रेम प्रदायते कृष्णाय कृष्णचयितननंने गौरत्तिषे दुरवे गौरचंग्राय राधिकाय तदालये कृष्णाय कृष्णभ्ताय तदभ्ताय नमों न्यान्प्रप्रजन्तमनुपेतमपेतकृष्ण जईकायनोबिरहकात्तयाजभाव पेतितन्मेतयातर्वोभिनेदो तंसर्वभूतरिदयं मुन्मानुतो तवैवासी तवैवासी नजिवामित्वयाबिन इत्रिविज्ञाय राधे संने मामचर्णा भक्त्याबिहिनाय पराधलक्षे सिताक्ष कामादिकरंगमध्ये त्रिपामयिं तंसरणं प्रपन्ना भुंदेन्मस्ते जन्मा सिर्ष्यमद्भागोतं किवालीशत्याय प्रपन्ना भुंदेन्मस्ते जन्मा सिर्ष्यमद्भागोतं किवालीशत्याय कल यह बतलाया, पहले बतलाया था सबासणा के सम्मन्द में, उच्छकोटी के भक्तलोग अपनी बासणा को तुमारे इच्छाये मोर इच्छाये मिशाईलो, यह पढ़ाया कहीं, भकति विनोद कवे आपने भुलीलो, तुमारे इच्छाये मोर इच्छाये मिशाईलो, माने क्या है, इसका नाम है सबासणा, भरत महराज हीरन में अपनी बासणा को बराबर कर दिया था, इसलिए हीरन हो करके आये, भकत लोग प्रारंभ से जो रगण गामयी हैं, अपनी बासणाों को अपने अभिलशीत कृष्ण परिकरों के साथ में समान भाव को ला देते हैं, इसलिए उसको कहाते हैं सबासणा, साधारणी करण, इसको साधारणी करण भी, जीव गुर्षामी ने कहा है सबासणा में और साधारणी करण, साधारणी करण मैंने, एक आदमी के घर में कोई मर गया, और वो फुट फुट करके कोई रो रही है, उसकी पत्मी, जब वो फुट फुट करके रोने लगी, तो जो उसको समझाने के लिए घर में गई, तो वो आशी बासणा, उसके दोनों एक पराभर के वो भी रोने लगा, आज मैं कहीं गया, एक आदमी, एक महिला गिर गई हैं भख, उनके पैठ तूत गए हैं, सत्राडी जी के घर से, और उनको ये सब लगाया गया है, फ्लैस्टर, फ्लैस्टर, और सब बड़ी दूखी थी, और मैं गया तो, नहीं जाने कैसे उट करके, उसको मैंने खड़ियो करने, वो बिछाओने पर, और हमारे पैठ को, और हमारे ये सब को पकड़ करके एकदम � जैसे बेटियां पिताजी को पकड़ करके रोती हैं, उस सारोणा दे करके हमारे भी आश्य निकल आये, इसको कहते हैं साधार निकल आये, आप भी वो लगे, ओहो, इसका नाम है साधार, आदमी क्यों रोता है, यह हस्ता किसलिये है, जब दोनों के विचार, दोनों के हर्दई एक समान लेवल में आ जाते हैं, तो उनके भावों को समझ करके यह भी वैसा ही है, इसको कहते हैं साधार निकल, इसका नाम अस्तयाम लिला है, कृष्ण की लिलाओं में, जो कृष्ण के परिकर हैं, कृष्ण की जो शेवा कर रहे हैं, उनकी बासना में, अपनी बासना ऐसे मिला करके बराबर कर दी, साधार निकल हो गया, कि अब दोनों का हर्दई करीकरी एक जैसा हो, यहां पर बैठा हुआ है, किन्तु अब क्या श कृष्ण को कहते हैं समाधी, समाधी मनें क्या, समधी मनें क्या, हर्दई, हर्दई, यही साधार निकल, समधी, बराबर, उनका हर्दई, हमारा हर्दई, दोनों एक हो जाता है, कृष्णे के साथ में अधिक मत करो, समाधी करण कृष्णे के साथ में नहीं होगा, अद्वाइपाद हो जाएगा, समाधी करण किसके साथ में करना है, जो उनके परीकर हैं, सिदाम, सुबल, नन्द, बाबा, जो सोधा, गोफियां, गाएं, वहाँ के पक्षी, पीट, पत समाधी करण करो, समाधी करण में वही मत मनो, नहीं तो यह भी अध्वाइपाद हो जाएगा, क्या करना है, एक जैसा, जैसे वो शेवा करते हैं, वैसे हम तन्मे हो करके उनकी शेवाओं को करेंगे, गोबर्धन परिकमा करो, तो किसी भाव के साथ में करो, बात चीत इदर उदर की चट्चाय करते हुए, अरे वो तो बेकार की है, यह ऐसा है, हमने ऐसा किया, यह समत करो, दुनो, रुप सनातन कैसे कृष्ण को, गोफियों को दुनते थे, अंतता ये तो परोज्ये, यहाँ पर ये गोचार्ण करते थे, यहाँ पर उनका भी सेख हुआ, गोबिंद पुंद में, कृष्ण सरोर में गोफियां, कृष्णों को चैन करके माला बनाती थी, और कृष्ण के साथ में अंतरंग लिडाएं हुआ करती थी, और वो सब पी� आ रही हैं, और कृष्णों से खिठोली कर रहे हैं, वो सब खिठोलीयां हमारे हिर्दाएं में प्रगटित हों, ऐसे ही जहां जहां पर जाएंगे, उनकी जोंको श्मर्ण करते हुआ, उनको प्रणाम करते हुए, हिर्दाएं में उन सबको श्मर्टी लाते हुए परिकर्म बड़े आराम के साथ में चले जा रहे हैं, और जल्दी से जल्दी करना है, तो तो यह ऐसे होगा, जैसे जल्दी से जल्दी हमको नाम पुरा करना है, पचास अजार या पशीस अजार, जल्दी से जल्दी, जल्दी से जल्दी पर समय है, पर ज्यान है, भाव और उसके ग� लिला अश्पर्ण के साथ में अनर्थनिबृति की लिलायें हैं, जैसे पुतना इत्यादी का बद है उसको लो, उसके अंदर में जो कपड़ता इत्यादी थी हमारे अंदर में है, थे प्रभु आपने पुतना का ये किया था, हमारा भी ऐसा कर दिया, हमारे हिदे को निर् दूसरों से बात करने की कोई ज़रूरत नहीं, मन में वो सब लिलायें स्पोर्टी होती जायें, इसका नाम है समानी करण, हम मंत्र जब करने के शमय में चुपचाब ऐसे बैठ जाते हैं, सरीर को ऐसा बैठा और मन विशयों का चिंतन में लग गया, उधर भटक गया, हमारा चित मंत्र में समानी करण नहीं वा, सधारणी करण नहीं वा, मंत्र में अपने चित को लगातर के चिंतन करो, उसमें किसी से बोलने की, चलने की कोई ज़रूरत नहीं, मंत्र को कृष्ण काम देव का मंत्र है, काम गायत्री है, महाप्रभु का मंत्र है, इसमें एक कर दो मन को, समान, कोई चिंता दुसरी नहीं रहे, संसार का प्रोबलंग वहाँ नहीं आये, वो अपने आप दूर हो जाएगा, वो तो प्रोबलंग का रहेगा ही संसार का, इसलिए निश्चिंत मकडी का जाल मने क्या तरह तरह के चिंताओं के लिए, तरह तरह के चीज़ें, हमको यहां जाना है, यह करना है, यह करना है, बगीचा बनाना है, मंदिर बनाना है, और करना है, और करना है, इधर करना है, हजार लाग शिष्यों हो गये हैं, क्या होगा, उसका तो प्रोबल समाना अधिकरन हो, इसलिए यह गोपियां यह कर रही हैं, मात्फुर पत्नियां, मत्फुराकी जादोत, गोपियों में चित को एक कर दिया है, और चिंतन कर रही है, गोपियां एक प्रतक्ष्वत देख रही हैं, जो गोपियां ऐसे कर रही हैं, देख रही हैं, क्या देख रही हैं? जादो हनेम, हननेम, मथनो पलेप, रिंखेंखनार भरुदितो, ओक्खनम अर्जनादो, गायंति चहिनम, अनुरक्तधियो यत्रुकंचो, धन्या ब्रजस्य उरुक्रमचित दजाना, ये करें कि बर्जिकी इस्तिरियां धन्य हैं, उरुक्रमचित दजाना, उरुक्रम की उरुक्रम, जिनके उरुक्रम हैं, क्रम मनें क्या है? एक क्रम मनें होता है पेर, उरुक्रम, त्रिवीक्रम, और उरुक्रम, जिनके वैभाव उरु हैं, जिनकी लिलाएं ये सब, बड़ी मधूर, बड़ी सुन्दर हमें ये क्रम लिलाएं, ऐसे जो उरुक्रम जो हैं, सर्वशक्तिमान, अखिलरसामित सिंदु जो कृरिष्ण हैं, चित्तजाना, उरुक्रम चित्तजाना, उरुक्रम की चित्तयान हैं, चित्तयान मनें क्या है? मनो रत्थ जिसको कहते हैं, मनः रत्थ, जिसका मन है रत्थ, किसका? उरुक्रम का, उरुक्रम की सब समय चिंता करती हैं, एक छण भी ऐसा नहीं जाता, जो उरुक्रम जो कृरिष्ण हैं, उरुक्रम का दिया जाएगा जैसे, राश अस्थानी में कैसे थिप रगती से नित्य करते हैं, और थिप रगती से ऐसे माल्म होते हैं, जैसे करोडों कृरिष्ण बन गयें, ये उरुक्रम हैं, उनकी मद्धर मुद्धर लिलायें एस्वज्य से भी बड़ी उन्नत किस्म की हैं, इस चीज़ को समझने चाहिए बीभू हैं, तो भी गोपियों का चीज़ जो इसके अंदर में है, इसके उपर में, वो चड़े रहते हैं, चड़े रहने का मतलब क्या? चड़ा न बतलाओं? अभी एक सांप निकल आया, और यहां पर जट ऐसा फंड करता हुआ, काला साई इसी के बीच में घुश गया, तो किस कहाँ चला गया? वो सांप आपके चित पर चड़ गया, उतरेगा नहीं जब तक यहां से कहीं से भगा न दिया जाएं, या उसे मार न दिया जाएं, किन्तो चित पर वो चड़ा रहेगा, यहां तक ही एक घंके तक यहां से जाने के बाद भर में भी वो चड़ा वो जैसे करता है ऐसे अंस्पर, यह चित पचान है, ऐसी कृष्ण, यह तो एक बत लाया है, यह तो भिशनतम भाव है, रोद्रभाव, इंतो कृष्ण का है मदुरभाव, कृष्ण उनके चित पर सब समें चड़े, आरूढ हुए रते हैं, इसलिए गोपियों का चित हो ग नहीं जिनके रत है, कृष्ण का चित ही जिनका रत है, कृष्ण के चित पर सब समें गोपियां चड़ी रहती हैं, खैं वो भार्का में हों तो भी रो करके गोपियों का श्मन्द करते हैं, खैं गोचारन लीला कर रहे हों सखाओं के साथ में, गायों के साथ में, कृष्ण का चित कहां है, कुछ इदर उधर देख रहे हैं, क्या देख रहे हैं, कहां से गोपियां आ जायें, कैसे हमारा मिलन है, बस दिन भर राप भर उनके, इतना पिश्व का श्रीजन इत्यादी सब उनके अंसों के द्वारा होता है, उनको कुछ, वो सारी व्यावस्थाएं पक्की हैं, तिरफ्थाई व्यावस्थाएं बना रखी हैं, उनके अंसों के कलाओं से ये सब कुछ होता रहता है, उनके एक भुरुभंगी से ये सब कुछ हो जाता है, किन्तो असल में उनका चित कहां रहता है, गोपियों के चिं कृष्ण के प्रेम का था नहीं पाती हैं, रुपमुणियों, सक्तभामा, इच्छादी, हम इतनी लोक मिल करके भी कृष्ण का हम लोग इच्छाओं को पुर्ण नहीं कर पाती हैं, और ये सब्स में राधे राधे, गोपी गोपी ये कहा करते हैं, महाप्रभुजी चेचन उनके चित पर गोपीयां आरूब हैं, इस लीला में भी, इसलिए गोपी गोपी कहा रहे हैं, लोग उसके भावों को समझ नहीं करके, लठीया ले करके उनको मारने के लिए हैं, इसलिए इसको कहते हैं, हम लोगों का कादो का चित इतना तो नहीं होगा, प्रिज� आरम्भ नहीं करेंगे तो होगा, इसलिए बहु आरम्भ, ये भक्ति साब आदर हैं, जिन के लिए शक्ती हैं, कृष्णे के लिए ये सब कुछ नहीं है, महान आत्यार्जों के लिए ये सब कोई बात नहीं है, प्रिज आरम्भ नहीं करेंगे तो होगा, ये भक्ति साब आदर हैं, जिन के लिए शक्ती हैं, कृष्णे के लिए ये सब कोई बात नहीं है, महान आत्यार्जों के लिए ये सब कोई बात नहीं है, महान आत्यार्जों के लिए सब कोई बात नहीं है, जिन के लिए शक्ती ह गईया का दोहन भी तो है न, बच्चों को खिलाना, पिलाना, लाड त्यार करना है, भक्ति भी हैं, उनकी शेवा भी करना है, घर में ज्ञाडू फाडू देना है, मैं बहुत भजन कर रहा हूँ, मुझको यहाँ पर ज्ञाडू देने का समय नहीं है, मैं कैसे ज्ञाडू बगीचे का रखवाली कैसे हो, फूल नहीं आएगा तो अर्चन होगा, फूल की जरुवत है की नहीं, फूल की भी जरुवत है, तो फूल के लिए हम लोग कोई चेस्टा नहीं करेंगे, तो आएगा कहां से, तो उसी भी तो ठाकुजी के अर्चन के लिए चाहिए, आएग कैसे भजन करना चाहिए, ये यहाँ पर दिक्ला रहे हैं, घर में बच्चों का रहना भक्ति के लिए बाधक है, कोहा, कोह, काह, की करेंगे और भजन करेंगे तो आजाएंगे यहाँ पर, घरों में जढ़ू देते रहने के लिए हम आये हैं भर छोड़ करके, इसलिए आये शिकायत की जगनाद दास बाबा जी महाराज चिद्धर हम लोग घर बार को छोड़ करके आये हैं, भजन करने के लिए अस्तकाली लिला का श्मर्ण करेंगे, साप समय किंचन करेंगे, अरिनाम करेंगे और बाबा जी कहते हैं कि भुगेच्य में पुल लगाओ, पेंगल लगाओ, और और साप काम करो, जाडू दो यहां, और साप काम करो, साप सुत्रा रखो, तो इसके लिए तो हम लोग आये नहीं, उन्हें ने कहा जिसे तुम अभी जदी नहीं करेंगा तो तुम्हारा मन � अन्हें तो मरेगा, घर के काम, जैसे गो दोहन करना, कूटना, मुशलते या धेंकी से कूटना, चक्की से आटा पीशना, दधी के मंधन करना, घर का मारजन करना, ये सब काम है, ये तो भजन में बादा है, गोपियों ने कैसे इसको अपने भजन के अनुपूल बना लिया, ऐसे हमको ये संसार में साधप स्थिति मराते वे करना पड़ेगा, अभी तुम्हारी समाधी नहीं लगेगी, एक मिनिट के लिए भी समाधी नहीं लगेगी, तुम्हारा चित बिच्च प्राई दरुदर्ध्याओं के तुमने कांथे पूर्वजनम में बो दिये हैं, कांथा क्या? कर्म ही ऐसा किया है जिसमें कि कुछ सूख और दुखा आयेगा ही, उनको भोगना ही तुम्हें पड़ेगा, रो करके भोगो अत्वाहस करके भोगो, रो किसली आते हैं पूर्वजनमों के संसकार ते, इस जन्मों के संसकार ते भी आते हैं, सरी की उपेच्छा करो, देखो अभी रोग आजाएगा, अभी वर्फ में स्नान करो, अब वर्फ का पानी पियो देखो जो दुखा मा आजाएगा, इसके लिए पूर्वजनम के संसकार की आवश्रक्त्या नहीं है, बीडी सिगरेट खू पियो, चाय पियो, राजा भांग पूर्वजनम के संसकार की कोई भी आवश्रक्त्या नहीं है, और कुछ ऐसे हैं, जैसे ये नहीं करने पर भी रोग आजाएगा, गुढापा आएगी, किसी को गुढापा 50 वर्ष में आजाती है, किसी को 60 में, किसी को 100 वर्ष में, किसी को 150 वर्ष में आती है, ये सब संस के संसकार के भी होता है, तो हमें अपने संसारी करतक्तियों को समश्याओं में राते भी उन समश्याओं को अनुपूर बनाना है, जाड़ू देना है, इसको मंदिर समझो, भगवन मंदिर है, यहाँ पर जाड़ू दने से क्या होगा, हमारी अभिद्या दूर हो जाएगी, कुञ्जो में, लताओं में, इसलिए ये सबको करना चाहिए, कैसे करेंगे, जैसे ये कर रही हैं, कैसे सबेरे उठी, और उन्होंने उठ करके ही खारकृष्णी की चिंता करने लगी, अभी हम लोग उठते हैं, तो समच्याओं का पहले चिंतन होता है, ये बाकी रह गया कल का, ये क्या होगा, नहीं होगा, ये सब, और उसी समय में कार्ज निर्द्धार्ज सारे दिन के लिए कर रहे हैं, ये करना है, इसे मिलना है, ऐसा करना है, बैश्णों का क्या है, उठ कर दिया, जै दिया, गुर्वस्थ पार्च दिया, बैश्णों का, चेतन महाप्रों का, ये सम्में लग दिया, और हरिराम करते वे भी लग गये चिंतन लग दिया, उनको संसार के उसमें चिंता, जदी रहे भी तो वो दूर रहे, तो वैसे ही ये सबेरे उठा, उठ करके क और चिंतन करके क्या कर रहे हैं, जादो हने, महने ने, राय को दूना है, ये कौन का राय है, मत्पुरा की इस्तिनिया का राय है, सबेराज़वा, गाएरंभारन, बच्छणों को खोलो, बच्छणों को बांधो, ये लियाओ, हन्या लियाओ, कलस लियाओ, दूद दोने के लिए लाओ, उसे छोड़ दो, उसे बांधो, उसे ऐसे करो, हो हला होने लग गया, और गाएं रंभाने लगी, और बच्छडे सब खुटा से छुड़ा, और वो क गोकियां दूरे लगी, ये ब्रज में, इनका कित कहा गया ब्रज में, और जा करके देख रहे हैं, ये सुन्दर सुनदर गोकियां, रंग दिरंगी, उस आज धारनी की रहे हैं, और बच्छणों को हटा करके तिर वो दूने लगी, और क्या कर रहे हैं, गोबिंद, गोबि दामो धर्माद्धवेशी, परते काम में, दू रहे हैं ये गायों को, हाथ तो वहाँ है, हाथ काम भी कर रहा है, कैसे पूर्व जन्म के, या इश जन्म के अप्शार्थ के, किन्तू चित कहाँ है, गोबिंद, दामो धर्माद्धवेशी, ऐसे जढ़ू देते समये चित को कहां ले आओ, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, हरे, हरे, हरे, राम, हरे, राम, राम, राम, हरे, हरे, जढ़ दो, कोई हर्चे, चित तुम्हारा कृष्ण राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, राम, � रामे जान, माँथवण। करुणां कुरुमई, करुणां भरिते, करुणां कुरुमई, करुणां भरिते, करुणां कुरुमई, करुणां भरिते, सनक सनातन बर्णिते, राधे जय जय माँथवण। दू रही हैं, हम जाड़ू दे रहे हैं, खाकु जी के लिए माला गंधन कर रहे हैं, रशोय के लिए सबजीयां मानन कर रहे हैं, घर में तो यही काम हैं, और किर्षन का चिंतन कर रहे हैं, गानों में जो चीज़ है थीक वही चिंतन कर रहे हैं, मानों आँकों से देख करके कर रहे हैं, ये मत्पुरा की नागरियां और देख रहे हैं, बिन्दाबन में जाय करके अपने आँकों से देख रहे हैं, अनुभव कर रहे हैं, ये गोपियां दूद दो रहे हैं, और कर रहे हैं क्या? गोबिन्ददाम। कोई आवहनने, आवहनने, जड़ा उससे बात परो तो, जल्दी बात परो, आवहनने कूठना, मुशल से कूठ रहे हैं, क्या? गेहं, ये जौ होता है न, जौ में छिल्के होते हैं, छिल्के को उतार करके तो उसको इसी काम में लगाते हैं, उसको भून करके, या जैसे हो, उसका आटा पीछते हैं, सत्तु पीछते हैं, और काम करते हैं, चाल कोभी ऐसे नहीं, चाल कोभी फिर फ़ोड़ा सा उतलेते हैं, तो उसमें में दो गोपिया एक उधर दे, और एक इदर से, धम, और उधर से धमा धम, ताल से, हाथ में चूरी है, सोने के कडी कंगन, वो जन्न बजती हैं, और इधर में ताल पड़ा, उसका धम धमामुद, धम मनें क्या, धिक, तां, धिक, तां, उनको धिकार हैं, जो कृष्ण का श्मर्ण नहीं, महाप्रभुब जी का श्मर्ण नहीं करते हैं, जायन कर रहे हैं, कृष्ण का श्मर्ण कर रहे हैं, अना, दिक्रेतु कामा अखिल गोपकन्य, मुरारी पादार पितकित्य बृत्य, दत्यादि कंग्मोह बशाद वोचत्, गोबिंद दामो धर्माँ धले, क्या सब? गोबिंद दामो धर्माँ धले, दिक्रेतु कामा अखिल गोपकन्य, दिक्रेतु कामा अखिल गोपकन्य, मुरारी पादार पितकित्य बृत्य, दत्यादि कंग्मोह बशाद वोचत्, दत्यादि कंग्मोह बशाद वोचत्, गोबिंद दामो धर्माँ धले, गोपिया, दिक्रेतु कामा अखिल गोपकन्य, गोपिया, अखिल गोपकन्य, अखिल माने कोई बाकी नहीं, समस्त गोपकन्य, मुरारी पादार पितकित्य बृत्य, मुरारी के शरणों में अर्पित चित्र बृत्यी, वो चित्र बृत्यी अब अपनी नहीं रही, किसमें रही, मुरारी की मुरारी की चिंदा सरस्तमें वो कर रही, इसलिए दिक्रेतु कामा, दिक्रेतु कामा मने क्या, दिक्रेतु कामा मने क्या, दिक्रेतु कामा, कामा अखिल, अरे भाई उसमें अखिल, इसमें ये भी होगा, कामा अखिल, तो भी कामा ही अखिल होगा, तो ये ऐसे समझो, को अकार और अकार उसमें, उसका अलग अर्थ हो जाएगा, उसका अलग हो जाएगा, तर कामा मने, गोपियों की जो तो कामनाय हैं, उनको तो कलश में भर लिया, हिरगय में भर लिया है, उसको दिक्रेतु कामा, उन कामलाओं को ले करके जा रहे हैं, कैसे उनसे मिलन होगा ये कामनाय, ये मथ तो जद दही देचने के लिए, कोई भी गई, उसका भी दधी बिक्री कारेवाजी हमारे भारत बर्ष में नहीं था, हमारे समय में नहीं था, दधी या मथ था, ये बेचा नहीं जाता था, अब आज कल ये बेचा जाना लगा, ये तो घरो घरो में, वहाँ पर, नंदगाव में एक, छाच का, छाच का कुण नहीं, वह तो ऐसे थेंग दिया है, कौन खाया, जहाँ पर दूद और दही और मक्खन के, की नदियां भाय रही हैं, वहाँ पर कौन बेचेगा है, और कौन लेगा है ये सब, नहीं, बिक्री तुकामा, पैशे बेचेने के लिए, कौन लेने बात है, मत सोचना कभी जे, राधा जी दधी बेचेने के लिए निकल दी थी, विश्वभानू की लाढ़ी सुमारी, जिनके यहां कितनी लाख गाये हैं, ज्यारा लाख गाये हैं, और उनके घर में रिद्धी, सिद्धी ज्यादी है, और वो दही बेचने के लिए जाएँगी, जदी किशी की कलपना है तो वो ठीक मत समझो, उसका भाव और तो दूसरा होगा, इसलिए गोपीयां कभी भी दही बेचने, दूध बेचने के लिए मथुरा नहीं आते थी, पलकी कभी भागुर दिशी ने जग किया, कोबिंद कुण में या काइंद्री, तो दधी दूध बेचने जाती थी देधी के लिए, और कुछने से रार मचीती थी इसी शमय में, इसलिए दिक्रेट, उसका अर्थ बदलना खड़ेगा, वैसा नहीं, अर्थ बदलना ठीक है, कामा में उसने ने करके लगा दिया है, काम में लगा दिया, गोपियों का काम क्या है, प्रेम, इती, प्रतामदर, यह गोपियों का काम को प्रेम का कहें, इसलिए यहां पर यह मत समझेना जी, गोपियां गही, दूध और मक्खन बेचने के लिए जा रही हैं, अभी ऐसा मत समझो, मत्पुरा में राधा जी आएंगे, ददी बेचने के लिए, या बर्थाने में, लेगा कौन, लेगा कौन, अच्छा कोई घर नहीं है, जिसमें कि ददी और मक्खन चोरी करने के लिए कृष्णे जाते थे, यह बात तो ठीक है, इसलिए ये बहाना मात्र तिक्रे सर्धादिकं मुह बतात भूचन, गुभिन्दधामू धर्मातुरिया, उदुख्खलेशं धिचतान्दुलांच्य, संघंतयंतो मुषलैः प्रमुद्धा, गायंति गोप्यो जनितानु रागा, गुभिन्दधामू धर्मातुरिया, कोई भर में सुपक्षिको पढा रही है, क्या पढा रही है, सबेरे उच्छर के, पढा रही है, कासिप्कराम् भोजपुटे निशन्नं, किलाचुकंकुं, किन्सुकरक्तुन्दम्, अख्चापयामात सरोरुहाति, गुभिन्दधामू धर्मात्भेति, इसी तरह से, दोहनने, हनने, अवहनने, मने मुसल्टे पुतने, मर्थनो पलेप, मर्थन, दरी मंथन कर रही है, कित एकदम तन्मे हो गया क्रिष्ण में, क्रिष्ण के जसोदा के सुतकी, जसोदा सुतकी, बाली केली का स्मर्ण करते हुए, बाली केली माने क्या, बढ़पर्त के लिलाये हैं, इसमें जा रहे हैं, थोड़ा सा दूल गये, जब क्योकट के पास आये, तो किशी को आपने � कभी काग को देखा, क्रिष्ण खा रहे हैं, मक्खन, और देखा जी काग आये, बंदर आये, बंदर को देखा, वो इसे रुनारम किया, दर के मारे, और चौक करके फिर वहाँ से जल्दी से लडखड आते हुए, गिर्दे पाड़े पाड़े पाड़े पाड़े पाड़े, एक पच्छड़ा लिया उसकी पूजा कराएंगे, पच्छड़ा लिया उसकी पूजा कराएंगे, पच्छड़ा लिया उसकी पूजा कराएंगे, पच्छड़ा लिया उसकी पूजा कराएंगे, पच्छड़ा लिया उसकी पूजा कराएंगे, पच्छड़ा लिया उसकी पूजा कराएंगे, पच्छड़ा लिया उसकी पूजा कराएंगे, पच्छड़ा लिया उसकी पूजा कराएंगे, पच्छड़ा लिया उसकी पू मक्खन, उन्हेंने उसको खड़ा करके सोचा जे इसके उपर मैं जड़ा चड करके था, और जैमिन थोड़ा का उसका पच्छड़ा लिया पच्छड़ा लिया पच्छड़ा लिया और फाग गया, और वो पकड़े हुए उपर मैं रह गये, और मैया मैया मैया चिलाने लग इनका यह काम भगवान के भजण में बादक नहीं है, उसी परकार से यहां का जाड़ू देना, सब्जी अमाण करना, रशोरी अमाण करना, या अपने घर में भी खातु जी को प्रदान बनाओ, राधातिस्म, और उनकी शेवावों को करते वे इस परकार से लगादो, त सो जाओ, सो जाओ, यह नहीं कहती, क्या कहती हैं, गोबिंद दामों धर्माधरेती, धर्माधरेती, धर्माधरेती, धर्माधरेती, धर्माधरेती, धर्माधरेती, धर्माधरेती, धर्माधरेती, धर्माधरेती, धर्माधरेती, धर्माधरेती, धर्माधरेती, धर्माधर कोई भी बात है, इसे घरवालों से लड़ो मत, अपने मन से लड़ो, उनको ऐसे कामों में लगाओ, यह घर पाठसाला है, पाठसाला में शीक्षित हो करके, पास्च करके, तब यहाओ, और वहाँ पर शीका कुछ नहीं, यहाँ पर चले आओ, तब फिर वही वक्षडा � प्रेंखेंखना, प्रेंखेंखना भी, उधितो ओक्खन मार्जना रूप, घर में लीप रहे हैं, आजकर लीपने का काम नहीं, गोबर और मित्ती पानी मिला करके, या गोबर के साथ में लीप रहे हैं, इतना सुन्दर मित्ती का घर चलने पर भी, उसमें कुछ बल आएग उसमें कुछ बल आएग, उसमें कुछ बल आएग, उसमें कुछ बल आएग, उसमें कुछ बल आएग, उसमें कुछ बल आएग, उसमें कुछ बल आएग, उसमें कुछ बल आएग, उसमें कुछ बल आएग, उसमें कुछ बल आएग, उसमें कुछ बल आएग, उसमें कुछ पहले राग, राग से हुआ अनुराग, और अनुराग से हुआ अनुरक्तम, राग किसको कहते हैं, जग चित्त की विर्तियां बिना किसी हेतु के, कृष्ण के चर्णों में निरंतर लगती रहे, तई जो धारावत अभिछिन्द कती से, पुरुष को कहते हैं राग, सभा� जिनकार सभावीत रूप में चित्त की विर्तियां, कृष्ण की शेवा में लगी हुई हैं, चोपी सो धन्ते, इसलिए रागात्मिका भक्ति की यहां पर बात हो रही है, उसका अनुवथ हो करके हम कुछ जो करेंगे, उसको कहेंगे, उन्हों में अंतर है, कुछ लोग नह अब इस सीज को पाने के लिए, इस जगर्त में अभी आरम्भ कर रहा है साधन पज़न, तब इसको कहते हैं रागानुवथ तो एनम अनुरक्तद्धियो अस्रुकन्था, आँखों में आँखों धला रहे हैं या निकल रहे हैं अनुरक्तद्धियो अस्रुकन्था, आँखों धला रहे हैं या निकल रहे हैं या निकल रहे हैं ऐसे जो अनुरक्त रंग गया है, जिनकी आतमा ऐसे राग से, इसलिए उसको कहते हैं अनुरक्त, कपड़ा सफेर, लाल रंग में उसे अच्छी तरह से रंग, यह अनुरक्त हो गया है ऐसे जिनकी चित्रपृति, चोबीशो गंचे के चोबीशो गंचे, उसी में अनुरक्त है इस प्रेमे, और कोई दूसरी चीज़ी नहीं है, अनुरक्त, दियो मने बुद्धी जी, अस्रुकन्थो, के तन्नमा पुरु करें, कब हमारा दिन होगा, नैनं गलदाश्यु धार यह रागनु का स्थिति है, और दूसरा इसके बाद वाला जो स्लोक है, वो तो महापाव की स्थिति है, और इसके बाद की अंधिन जो स्लोक है, वो माधनाक्या और इसको उपर में चला जाएगा, उससे भी उपर धन्या ब्रग्यास्तिय उरुक्रम शित्र जाना, यह ब्रग्यास्तिय उरुक्रम शित्र जाना, यह ब्रग्यास्तिय उरुक्रम शित्र जाना, यह ब्रग्यास्तिय उरुक्रम शित्र जाना, यह ब्रग्यास्तिय उरुक्रम शित्र जाना, यह ब्रग्यास्तिय उरुक्रम श जहां सुना, उनका चित्र एकटम अस्तिल हो गया, शाम होना मने क्या, भरजमें शाम हो गयी, यह जहां आवाज आई, विभिन लोगों की विभिन परकार की धारणाएं हो गया, ब्रामणों ने वेद, पनिशदीत यादि का मंत्र आरों गया, और संध्या आनिक में जूद कृष्ण भी आ रहे हैं, बच्चों ने देखा कि कृष्ण आ रहे हैं, तो निकले घर से, और गोपियों के लिए शाम हो गयी क्या, जहां शाम हो गयी बस, सिंगार जो कर रहे हैं जिवाहिमों पर खतम हो गया, उल्टा पुल्टा जैसे करकरके, अपने दर्बाजों के पा धन्याब्रजर्श्तिय उरुक्कम शित्त जान है, उरुक्कम के चित्त की ज्ञान है, शीका शित्त कैसा उरुक्कम के लिए रक्त के शमान है, जिसका कृष्ण सबसमे आरूरी है, अथवा कृष्ण भी गोपियों की मनभाव और इत्थिति जान करके, सबसमे गोपियों की तो वार्का वाले कोई चिंता क्यों नहीं है, विंदाबान वाले कृष्ण कोई चिंता हुई, क्योंकि उनसे उनका समपर्ग है, इसलिए चटपर चटपर करने लगे, और कैसे जा करके उसकी राक्षा करें, इसलिए आने की तैयारी हैं, किंदों आ नहीं शक्ते, छोड़ी सी कोई कफ़र रह जाती है, कृष्ण को बुला रहे हैं, किंदों फिर भी कुछ नातों से कपड़ा रखती हैं, विश्यम पितामा की तरफ में देख रहे हैं, पांचो पांडों की तरफ में देख रहे हैं, कृष्ण सो बिंदा वन में सब समय, गोपयों के साथ में प्रिडा में सनलग में हैं, उनको फुर्षत नहीं है किसी काम को देखने का, तो फिर संसार में सब करके भक्त हैं, जो कृष्ण का आरादना करते हैं, अस्ताव सूर्थी पाच करते हैं, मंत्र जाप करते हैं, उनक कैसे करते हैं, अपने प्रकास अंतर से, दुश्यों दुश्यों प्रकारों में, औव वो सब शक्तिनान हैं, किष्ण राते वे भी, उस सबके इच्छावों को कृष्ण ही पूर्ण करते हैं, सबके हिर्दह में शाक्षी के रूप में परमात्मा है, इसलिए, उनका विच्चित गोपियों के लिए आरूड वो करते हैं, रफ जैसा बनाते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा करते हैं, परमात्मा

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