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shloka 2.20

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Vaishnavi

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नजायते मिर्तिवा कदाचिन नायं भुत्त्वा भविताबान भुयेह अयो नित्यः शास्वतोयं पुरानो नहन तेहन्नमाने सरीरे आत्मा के लिए कभी न तो जन्म है और न कभी मिर्तियों। आत्मा का होना या फिर न होना ऐसा नहीं होता है। आत्मा जन्मा नित्य शास्वत तथा पुरातर है। सरीर के नास होने पर इसका नास नहीं होता है।

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