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amrita

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mayka striyo ka apna hota hai jaha Jakar wo apni umra bhul jati hai,unka bachpan laut aata hai

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सुविख्यात लेकी का अप्रिता टेटन जी ने माई के पत्यार भूग लिखा है। रिष्णे पुराने होते हैं पर माई का पुराना नहीं होता है। जब भी जाओ अलाय बलाय तल जायें ये दुआई माँगी जायें। यहां वहां बच्पन के कर्डरे भिख्रे होते हैं कहीं अथी, कहीं खुशी, कहीं आशुः करते होते हैं। बच्पन के ग्लाज पटोरी खाने का श्वास बढ़ा देते हैं। एल्बन की बत्वीरे खेल किसके याद दिलाते हैं। सामार कितना भी खने लो, कुछ न कुछ छूप जाता है। तब ध्यान से रख लेना, हिरायें पिता की, कैसे होगा, सामार तो नहीं पर दिल का एक हित्ता यही छूप जाता है। आथी वक्त माँ आचल में उसे ख़ते थी, कुछ रहना कहते अतनी आचल में ख़ते थी। आ जाती वो मुख़पुरातर मैं भी, कुछ न कुछ छोड़ते रहता है। रिष्टे पुराने होते हैं, जानी कि माईका पुराना है। उस दिल्वी को छोड़ना हर बार आसा नहीं।

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