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Nothing to say, yet
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अंतरा एक सूरज निकला धरती पे च्छाया, फूलोंने अपने रंग फैलाया, पेड़ की हर तहनी बोले घीत, हवा में घुली है मिठी सी घीत, प्रकृती है, कूल इसमें है, जान हर लेहर हर पत्ता जैसे संजीत का सामान, हर नदी हर पहार बोले प्यार, प्रकृती का रै� हर नदी हर पहार बोले प्यार.