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Nothing to say, yet
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चलू चलते हैं तुम्हारे संग ही चल देते हैं। पर ना चानी क्यों मुझे ऐसा क्यों लगता है कि जिन्दगी में मुझे बार बार पीछे मुड़के भी देख लेना चाहिए। आवाजों का एक जंगल है जो मेरी तरफ पढ़ रहा है और मुझे क्यों इतने कोफ़त हो रही है। सूचने की कोशिश भी कर रहा हूं पर काश मैं पीछे मुड़के देख पाता। हलके मैं जानता हूँ कि जिन्दगी को मुझे देखना इतना आसान नहीं है पर कोई तो ऐसा रास्ता मिले जहाँ मुझे वापस मुड़के जानने का मौका मिल सके। है और भाई कोई रास्ता है क्या आपके पास है रास्ता ही तो नहीं है दोस्त खास रास्ता पाऊं तो भिला पाऊं कैसे।