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आलोक की समाज और साहित्य सेवा

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dr.aalokdr.aalok

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Doctor Dayaram Lok's literary and community service friends, my initial poem in the field of literary creation was appreciated and published in the Swasty Sarita magazine, which is published from Vikaner. My poetry continued to be published and about fifty of my poems were published in various newspapers and magazines, including the name of Kadambini Vini. The titles of five poems are: "Let's celebrate Diwali", "Come, let's congratulate today", "Calling in mid-season", "We don't remember Gandhi's immortal words anymore", "How can Suman take away the sun". My family has been involved in the economic foundation of the tailor community for hundreds of years. Only through this business can we make a living. Therefore, organizing a funeral feast for someone's death in the family burdens the poor and disrupts the family's financial stability. Keeping this in mind, during the first convention of Damodar Darji Mahasangh on June 14, 1965 दाक्तर दयारामालोक की साहित्य और समाच सेवा मित्रों, साहित्य स्रिजन शेत्र में मेरी शुरुवाती कविता तुमने मेरी चिर साधों को जहंकरित और साकार किया है, विकानर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका स्वास्त्य सरिता में प्रकाशित हुई थी. काव्य रचना अन्वरक चलती रही और करीब एक साउपचास काव्यकृतिया विभिन पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं, जिन में कादम विनी का नाम भी शामिल है. पाँच कविताओं के शीर्षक ये है, उन्हें मनाने दो दिवाली, आओ आज करें अभिनंदन, सरधे बुला रही, गांधी के अमरित वचन हमें अब याद नहीं, सुमन कैसे सौर भी ले, मित्रों, दर्जी समाज की आर्थिक बुनियाद सैंकडों वर्षों से दैनिय रही है. इस धन्धे से बस गुजर-बसर ही हो सकता है, फिर परिवार में किसी की मृत्यू पर मोसर का आयोजन करना गरीब, परिवार की आर्थिक रीड को लुञ्श-पुञ्श कर देता है, इसी को ध्यान में रखते हुए दामोदर दर्जी महासंध के प्रथम अधिवेशन 14 जुन 1965 में मोसर प्रथा संबंधित एक प्रस्ताफ पर विचार किया गया था और मैंने. मोसर नहीं खाने का संकल्प लिया था, इस मामले में मेरे परिवारजन ने मेरा साथ दिया और तब से मेरा परिवार मृत्यू भोज ग्रिहन नहीं करता है. समाज के परिवारों की जानकारी समाज के परिवारों की विष्ट्रित जानकारी एकत्र करने के उध्धेश से मैंने 1965 में बड़े आकार के फार्म श्पवाई थे, इस फार्म में व्यक्ति की पूरी जानकारी, नाम, पता, धन्धा, पढ़ाई, जन्म तिथी, रिष्टे� इस सिल्सेले में मैंने दाहोद, लिंदी, झालोद आदिस्थानों का भी दौरा किया था और निर्धारित फार्म में परिवारों की जानकारी संग्रह की, जब समाज की लगधक पूर्ण जानकारी हासिल हो गई, तो मैंने दर्जी समाज की सैंकरों वंशावलिया बनाकर, दामोदर दर्जी संदेश वेब साइट पर उल्लिक्ष्ट कर दी है, जातव्य है ऐसी ही जानकारी को आधार बनाकर, समाज सेवी रमेश जी राथार आशुतोष ने दर्जी परिवारों की जानकारी देने वाले समाज सेतु नामक विशाल ग्रंथ का संपादन किया, और इसे दामोदर दर्जी महासंद कारियालय शामगड के माध्यम से छप� समाज और साहिट्य सेवा में अग्रणी रहे हैं, वे यथार्थ में सम्मान और आदर के पात्र हैं

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