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बरसात के दिन थे। खिर्की के बाहर पीपर के पत्ते इसी तरह नहा रहे थे। सागवान के इस स्प्रिंग वाले पलंग पर जो अब खिर्की के बाहर थोड़ा इदर सरका दिया था। एक नोजवान लड़की शंकर से लिपटकर सोई हुई थी। खिर्की के बाहर पीपर के पास देखा करता था पर आज बदला लेने की भावना से ही उसने उस घाट के पास वाली लड़की को अपने घर ही बुला लिया था। शंकर खिर्की के पास सिगरट चला कर खड़ा था। उसकी नजर उस लड़की के अदनंगे शरीर पर थी। ऐसा नहीं था कि शंकर ने इससे पहले किसी लड़की के साथ रात नहीं गुजारी थी। बस यह वही लड़की थी जिशंकर की नव्स तेज कर सकी थी। वो खिर्की के पास खड़ा हो और भी उकसा दिया। उसने सिगरट का एक शला हवा में उड़ा कर वो सिगरट फैंक दी और उस लड़की पर लपक गया। वो भी इतराते हुए हंसने लगी। शंकर ने उसे पलट कर अपने उपर बिठाया और उसकी नंगी पीठ अपनी तरफ कर ली। तभी अचानक � उसके बालों में हाथ डाल कर अपने पास खीचा और अचानक उस लड़की ने शंकर का गला पकड़ा और उसकी आँखे लाल हो गई। उसके छेहरे से मास गर नहीं लगा और चुडेल हसते हुए फिर से बोली तू भी वही है अब इसका भूखा पर मैं आज अपनी भू� और वो दोडते हुए घर के बाहर गया तो उसने देखा वो किसी हवेली के एक गलियारे में है उसमें वो दोडने लगा पर वो गलियारा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था गलियारे के दोनों तरफ कई दर्वाजे थे और वो जिस दर्वाजे से गुजरता उसी दर् वो अपने विस्तर पर था पसीने से लतपत और उसकी सांसे उखडी होई थे