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I Walk With Ghosts by Scott Buckley | www.scottbuckley.com.au Music promoted by https://www.chosic.com/free-music/all/ Creative Commons Attribution 4.0 International (CC BY 4.0) https://creativecommons.org/licenses/by/4.0/
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हवाओं में कैसा जहर है, विजाओं में कैसा केहर है, दंखुट रहा इंसानियत का, अब तो हैवानियत का शहर है। भूखे भेडियों के खूनी नजर नव जातों पे बरपा रही है कहर, नोचा जा रहा मांस के लूठनों को, नई दुनिया का ये कैसा अस्थर है। गलेजा मूँ को आता है, सुनके कारस्तानी दरिंदों की तिवहारों के इस देश में, खूनी होली का मंदर है। अरे कब समझोगे है वानों, हम भी इंसान है, हाण माज के बने हैं हम, नहीं कोई सामान है। लूठ लो, तोड़ दो, नोच लो, पेक दो, मार दो, बीटियों को पूझने वाले देश की, क्या यही नहीं सोच हैं? क्या यही नहीं सोच हैं? यह कैसा खूनी मंदर है, इंसानियत भी अब बंदर है। निगाहों में वहशी पन, हाथों में अब खंजर है, हाथों में अब खंजर है। अरे, तुम हम से हो, हम तुम से नहीं। अरे, तुम हम से हो, हम तुम से नहीं। नौ मा रखते हैं कोख में, नौ मिनट में नोच लेते हूँ हैं। राखी नवरात्र अब नाम के प्योहार हैं। राखी नवरात्र अब नाम के प्योहार हैं। बदल रहा देश अपना, बदल रहा समाध है। चारो तरब पस मतलब की आग है। चारो तरब पस मतलब की। हवाओं में कैसा सहर है, फिजाओं में कैसा कहर है।