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This is a conversation between two characters, Budi Kaki and Rupa. Budi Kaki is an elderly lady who lives with her nephew, Buddhiram, and his wife, Rupa. Budi Kaki has given all her property to Buddhiram, but he doesn't take care of her. Rupa also doesn't pay attention to Budi Kaki's needs. Budi Kaki feels neglected and hungry. She confronts Rupa, who realizes her mistake and asks for forgiveness. Budi Kaki is finally treated with respect and love by her family. आज हम आपको हिंदी के प्रसद उपन्यासकार मुण्शी प्रेमचन्द की एक ऐसी कहानी दिखाने जा रहे हैं, जो मानवे करुणा की भावना से ओधप्रोध हैं. इस कहानी की प्रमुक पात्र बुडी काकी हैं. बहुत साल पहले बुडी काकी के पत्ती का विमारी के कारण निधन हो गया था और उसके बेटे भी जवानी में ही गुजर गये थे. अब बुडी काकी अपने भतीजे बुद्धीराम वो उसकी पत्नी रूपा के साथ रहती हैं. बुडी काकी ने अपनी सारी संपत्ती बुद्धीराम को सपोध समझ कर उसके नाम कर दी. परन्तु बुद्धीराम सपोध नहीं कपोध निकला. आये देखते हैं कहानी बुडी काकी की. जरा जल्दी करो रूपा, देर हो रही है, शहर जाना है. सामे से नहीं निकला, तो लोडने में देर हो जाएगी. अभी आयी जी. लाडली, बेटा जरा बाबु जी के ले पानी लाना. सुनो जी, समान जरा देख भाल कर खरीदना, हमारे बेटे की शादी है. तुम चिंता मत करो रूपा, शहर में मेरा एक दोस्त है, उसकी मदद से खरीद लूँगा. ले काकी, तू भी खाईगी? हाँ बेटा, मैं भी खाऊँगी, बहुत भूँक लगी है. पुरी कहिंकी, ले खा, ले खा ले, ले खा. अच्छा, मैं चलता हूँ, तुम और लाडली भी नास्ता कर लेना, और हाँ, काकी को भी दे देना, तुम तो जानती ही हो, काकी किस्ती चटोरी है, खाना नहीं मिला, तो पूरा घर सर पर उठा लेगी. हाँ, जानती हूँ, पूरा दिन बस खाना-खाना ही करती रहती है. काकी प्रणाम, कैसी हो काकी? ठीक हूँ बेटा, बस पेट में थोड़ी जलन हो रही है. क्यों काकी, कुछ ज्यादा ही खा लिया के आज? कहां बेटा, सुभा से भूख ही हूँ. पूरा दिन तो चड़ी रहती है, गैस बन गई होगी. मज़ाग उड़ा रहा है बेटा बुढिया का, सुभा से रूपा ने अन का एक भी दाना नहीं दिया. मैंने ऐसा भी क्या कह दिया, जो तू भी लगा मुझे सुनाने. क्या काकी, तुम भी सुभा सुभा जली कटी बाते करती रहती हो, पूरा दिन तो खाती रहती हो, फिर भी सुनाती रहती हो. बेचारी पूरा दिन काम करती करती ठक जाती है. पर बेटा, वक्त वेवक्त खाना मिले, तो तुस से ही तो कहूँगी. तू ही बता, तुस से न कहूँ तो किस से कहूँ? काकी, किसी से भी कहो, पर मुझे से मत कहो. वाह बेटा, तेरे तो तेवर ही बदल गए. जब मैं अपनी सारी जायदात तेरे नाम कर रही जी, तब तो बड़ा कहता था, जीवन भर आपकी सेवा करूँगा. बस करो काकी, हर समय बस खाना, खाना, खाना. लो, खाओ, क्या काकी, तुम भी ना, एक दिन नाश्टा देड से क्या मिला, लगी शिकायत करने? अरे कुछ तो उमर का ख्याल किया करो, इस उमर में भी धिन्डोरा पीटी रहती हो, बस खाना, खाना, खाना. मैं नहीं खाती ये बासी रोटी, तू ही खा ले, मुझसे नहीं खाई जाएंगी. क्या हो गया अगर एक दू रोटी बासी भी है तो? तुम नहीं खाओगी, तो और कौन खाएगा? वैसे भी इनकी महनत की कमाई है, हराम की नहीं. पर बिट्टा, ये तो बहुत सक्त हैं, भगवान करे तेरी बहुबी तुझे ऐसी रोटियां दे. खाना है तो खाओ, वना भाड में जाओ. अरे रूपा बहन, राम राम, क्या हो गया सुबा सुबा, पूरा घर सरपर क्यों उठा रखा है? अरे गीता बहन, राम राम, क्या बता हूँ, सुबा से काम करते करते ठक जाती हूँ. उपर से इनकी जली कटी बाते सुनो, दिन भर कुछ न कुछ सुनाती ही रहती हैं. चलो छोड़ो, तुम अंदर चलो बहन, बैट कर बात करते हैं. काकी, मा ने आज पूर्या बनाई थी, ले तेरे ले भी लाई हूँ. और है? और तो नहीं है, एक ही बची थी, तेरे ले ले आई. अच्छा बिटा, तु एक काम कर, तु मुझे एक गिलाट पानी ला दे. पानी, काकी पानी का क्या करोगी? तेरी मा ये सुखी रोटियां दे गई, पानी मैं डूबो डूबो कर खा लूँगी. ठीक है काकी. ये बुडी काकी के घर में प्रसिजन होता था. बुडी काकी को दाने दाने के लिए तरसना पड़ता था. एक ओर बुडी काकी दाने दाने के लिए तरस रही हैं, और दूसरी ओर परिवार में बुद्धिराम के बेटे सुखराम के तिलक की धूमधाम से तयारिया चल रही है. अगले ही दिन सुखराम का तिलक आता है. अरे भाईया, थोड़ा वाहवी सजा दो. इन जालरों को यहां लगा दो. और सुनो, यह सामान यहां क्यों रखा है, इन्हें वहां रख दो. आज तो घर में बहुत सारा खाना बना है, मैं भी पेल भरकर खाऊंगी, पर जहां रोटियों के लाले हो, वहां पूरिया मिले ऐसा भाग कहां. चल कर जड़ा कढ़ाई के सामने बैठती हूं. हाँ भाईया, हो गई सब तैयारिया, मेहमान आते ही होंगे. जी साहब, हो गई सब तैयारिया. लो भाईया, और कुछ समान चाहिए, तो बता देना. अरे काकी, तुम? हे भगवान, ऐसे पेट में आग लगे, पेट है या कुआ? अभी भगवान को भोग भी नहीं लगा, मेहमानों को खाना भी नहीं मिला. आग लगे ऐसी जीब में. गाउवाले देखेंगे, तो कहेंगे कि बुरिया को पेट भर खाना भी नहीं देते. ना कटवा कर दम लेगी, इतना खाती है, ना जाने कहां चला जाता है. अरे बहन, बड़ी खुशी का मौका है, घर की बड़ी बूरी है, क्यों आप शब्द कहती हो? अरे बहन, तुम क्या जानो इस बुरिया के नखरे, पूरा दिन खाती रहती है, और उपर से जली कटी बाते भी सुनाती रहती है. चला आओ, खुशी का मौका है, तुम्हें लड़ू खिलाती हूं. नमस्कार भाईसाहब, आईए, स्वागत है आपका. नमस्कार. बैठिये भाईसाहब. और भाईसाहब, हो गई शादी की सब त्यारिया? अरे भाईसाहब, आपको तो पता ही है, बेटी की शादी है, अंत तक कुछ ना कुछ त्यारिया रही जाती है. आप पहले जलपान कर लीजिये, बाकिये रिति-रिवास बाद में होते रहेंगे. एक और बुद्धीराम के घर में जशन हो रहा है, और दूसरी और घर की बड़ी बुदर्ग बुरी काकी अपने आपको कोस रही है और रो रही है. आईए देखते हैं कैसा जशन है? अरे, ये बुडिया कहां से आ गई? देखो तो, कितनी गंदी लग रही है, भगाओ उसे यहां से. छी-छी, कितने गंदे कपड़े पहने हैं इसने, जाओ यहां से. जाओ यहां से. अरे, काकी, तुम यहां? चलो यहां से. पिता, मेरी बात तो सुन. मुझे कुछ नहीं सुनना, तुम कोटरी में चलो. अरे, सुन तो सही. इस बुडिया ने मेरी नाक में दम कर रखा है, बैट जा यहां. किस अपराद की सजा दे रहे तू मुझे? मुझे तो डर है कि कहीं मेरे आशों इसके हंते खेलते परिवार को नहीं उजाड़ दे. हे इश्वर! जलपान तो हो गया, अग तिलक का कारेकरण शुरू करते हैं. ठीक है, चल ये. मेरा भतीजा बड़ा ही चंडाल निकला, और उसकी घरवाली भी. अच्छा होता मैं अपनी सारी जैदाद लाडली के नाम कर देती. रूपा, खाना लगा दो, बहुत भूँक लगी है. जी, अभी लाई. लाडली बेटा, तुम भी आजाओ, सुभाँ से भूँक ही हो. बेटा सुखराम, देखलो सारे दर्वाजे बंद है की नहीं, बहुत रात हो गई है, सोने का समय हो चुका है. जी, पिताजी. इसी के साथ सुखराम का चलक का कारेकरम संपन हुआ. घर के सभी सदक से खाना खाकर सो गए, पर काकी का ख्याल किसी को नहीं आया. परन्तु लाडली, अभी सोई नहीं है, उसे काकी की चिंता है. सब खाकी कर सो गए, मेरी तक्दीर भी सो गई, अब मैं क्या खाओ? बागों के हर भूल को अपना संभे बागवां, हर घड़ी करे रखवाली, पस्ती पस्ती डाली, डाली थी तेरी बागवां. ये लो काकी, पूरी खालो, सुबह से तुम भूखी हो. तु मेरे लिए लाई, पर एक ही लाई बिटा, इससे मेरा क्या होगा? और तो नहीं है, ये भी मैं चुप चप लाई हूँ, मा देखेंगी तो डाटेंगी. कोई तरकारी नहीं लाई, और है? चुप चप खालो काकी. एक काम कर, तु मुझे वहाँ ले चल, जहां सबे ने अपनी चुठन धैकी है. वहां क्या करेगी काकी? बेटा, तु ले चल बस. आपने अभी अभी देखा, कि रूपा ने बूरी काकी को किस प्रकार अपमानित किया, परन्तु फिर भी बूरी काकी अपने आप को रोक नहीं सकी, क्योंकि भूक इंसान को इतना विवश कर देती है, कि वे मान सम्मान भी भूल जाता है. लादली, बेटा कहां हो? कहां हो लादली बेटा, इतनी रात को कहां चली गई तुम? है, ये कैसा अनार्थ है, कितनी निर्दाई हूं मैं, जिसकी संपत्ति से मुझे 20,000 की आय है, उसे जूठन खिला रही हूं. हे भगवान, मुझे शमा कर, मुझे से बड़ी भूल हो गई, आज मेरे बेटे का चिलक था, पूरे गाउने भूजन किया, और काकी भूकी बैठी रही, इश्वर मुझे कभी माफ नहीं करेगा, उठो काकी, चलो, मुझे शमा करो. हे इश्वर, यह हमसे कितना बड़ा अपराद हो गया, काकी, हमें शमा कर दो. देखिये जी, हम सभी खाना खाकर सो गए, और काकी भूक से व्याकुल होकर, लोगों का जूठन उठाकर खा रही है. लो, भोजन कर लो, काकी, भगवान से प्रातना करना, कि वो हमारे पाप शमा करें. आज से आप हमारी काकी नहीं, मा हो, और मैं आपकी बेटी. और मैं आपका बेटा. खुश्यों का दिन आया है, जो मा मा हो पाया है. आज मुझे मेरी मा ने बेटा करें के बुलाया है. मा मेरी मा मा मेरी मा