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अपने भीतर की शक्ती जगाओ। दुनिया अपने आप बदल जाएगी। श्रोताओं, आप सभी का स्वागत हैं। आज हम एक ऐसी कहानी में डूबेंगे जो आपके दिल को छूलेगी और आपकी आत्मा को जगाएगी। यह कहानी है अमर की, एक साधारन युवक की, जिसकी असाधारन यात्रा हमें जीवन के गहरे रहस्यों से परिचित कराएगी। तो आये, अपने मन को शांत करें और इस यात्रा पर चलें। अध्याय वन अशान्त मन उम्बई की भीड भरी सढ़कों पर एक युवक तेजी से चल रहा था। उसका नाम था अमर। वह अपने ऑनफिस की और बढ़ रहा था, लेकिन उसका मन कहीं और था। उसके चहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी। अमर के मन म समाज ने मुझे से चाहा, अच्छी पढ़ाई, अच्छी नौकरी। फिर भी मुझे लगता है कि कुछ कमी है, क्या यही जीवन का उद्देश्य है। अचानक एक तेज़ हौर्ण की आवाज ने उसे उसके विचारों से बाहर खींच लिया। वह लगभग एक कार से तक् पढ़ाएँ। अचानक एक तेज़ हौर्ण की आवाज ने उसे उसके विचारों से बाहर खींच लिया। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह ल लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाए एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लगभग एक कार से पढ़ाएँ। वह लग अमर ने महसूस किया कि उसका मन हलका हो रहा है। शहर की भीड भाड और शोर शराबे से दूर, प्रकृती की गोद में उसे एक अजीब सी शान्ती मिल रही थी। कुछ घंटों की यात्रा के बाद, अमर एक छोटे से गाहव में पहुँचा। यहां का माहौल बिल्कुल � वह व्यक्ति मुस्कुराया और बोला, बेटा वह रास्ता देख रहे हो, उस पर चले जाओ। कुछ दूर चलने के बाद तुम्हें एक पुराना पीपल का पेड मिलेगा, वहां से दाई और मुड़ जाना, फिर तुम्हें आश्रम दिख जाएगा। अमर ने धन्यवाद कुछ देर चलने के बाद अमर को वह पुराना पीपल का पेड दिखाई दिया, उसने दाई और मुड़ा और थोड़ी ही दूर पर उसे आश्रम दिखाई दिया। आश्रम एक सादा सा भवन था, लेकिन उसमें एक अलग ही आकर्शन था, उसके चारों और फूलों के बग वृद्ध व्यक्ति ने कहा, मैं गुरूजी हूँ, यहां के लोग मुझे इसी नाम से जानते हैं, आओ, अंदर आओ। गुरूजी ने अमर को आश्रम दिखाया। यह एक छोटा सा आश्रम था, लेकिन यहां एक अजीब सी शान्ती थी, अमर को लगा जैसे यहां का हर कोना कुछ कह रहा है, कुछ सिखा रहा है। शाम को, जब अमर अपने कमरे में बैठा था, तब उसने महसूस किया कि उसका मन कितना शान्त है, पहली बार उसे लगा कि वह वास्तव में मौजूद है, हर पल को जी रहा है। रात को, जब वह सोने के लिए लेटा तो उसके मन में एक विचार आया, शायद मैं जिस शान्ती की तलाश में था, वह यही है। शायद यही यातरा मुझे वह सब सिखाएगी, जो मैं जानना चाहता था। इस विचार के साथ, अमर गहरी नींद में चला गया। उससे नह प्रश में लाली फैल रही थी और पक्षी अपना कल्रव शुरू कर चुके थे। अचानक एक घंटी की आवाज सुनाई दी। अमर ने अपने कपड़े पहने और बाहर निकला। वहां उसे गुरुजी मिले। गुरुजी ने मुस्कुराते हुए कहा, आओ, आज हम सूर के बाद गुरुजी ने अमर को साथ चलने के लिए कहा। वे आश्रम के पीछे स्थित एक चोटे से तालाब के पास पहुँचे। वहां एक पत्थर पर बैठ कर गुरुजी ने कहा, बेटा, तुम यहां क्यों आये हो। अमर ने अपने मन की बात बताई। अपनी नौकर में क्या चाहते हैं। उन्होंने तालाब की ओर इशारा किया और कहा, इस तालाब को देखो, यह शांत है, स्थिर है। इसमें जो कुछ भी प्रतिबिंब बेट होता है, वह स्पश्ट दिखाई देता है। लेकिन अगर इस तालाब में लहरें उठने लगें, तो क्या हो� लेकिन जब हमारा मन विचारों और चिंताओं से भरा होता है, तब हम भ्रमित हो जाते हैं। अमर ने गहरी सांस ली, उसे लगा जैसे उसके सामने एक नया दृश्टिकोण खुल रहा है। गुरुजी ने आगे कहा, पहला सबक यही है, अपने मन को शांत करना सीखो, ध्यान लगाओ, प्रकृती के साथ समय बिताओ, अपने श्वास पर ध्यान दो, जब तुम्हारा मन शांत होगा, तब तुम्हें अपने सवालों के जवाब मिलने लगेंगे। उस दिन अमर ने गुरुजी के साथ ध्यान लगाना शुरू किया। शुरुआत में उसे कठिनाई हुई, उसका मन बार-बार भटक जाता था, लेकिन गुरुजी ने उसे धैर्य रखने को कहा, याद रखो। गुरुजी ने कहा, जैसे तुम अपने शरीर को फिट रखन लगा है, उसे अपने आसपास की छोटी-छोटी चीजों का एहसास होने लगा, पत्तियों की सरसराहट, पक्षियों की चह-चहाहट, हवा का स्पर्श। एक शाम, जब वह गुरुजी के साथ चाय पी रहा था, उसने कहा, गुरुजी, मुझे लगता है कि मैं कुछ समझन बोल जाते हैं कि जीवन इसी खशण में है, न अतीत में, न भविश्य में. जब हम वर्तमान में जीना सीख लेते हैं, तब हमें वह शांती मिलती है, जिसकी हम तलाश करते हैं. अमर ने महसूस किया कि उसके अंदर कुछ बदल रहा है. वह अब हर पल को पूरी तरह से जी रहा था. उसे लगा जैसे उसकी आँखों से एक परदा हट गया है और वह दुनिया को एक नए नजरिय से देख रहा है. लेकिन यह सिर्फ शुरुवात थी. अमर को नहीं पता था कि आगे उसके लिए क्या-क्या सबक इंतिजार कर रहे हैं. हैश हैश अध्याय 4 कर्म का सिध्धान्त अगले कुछ दिनों में अमर ने आश्रम के दैनिक कारियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. वह सुबह जल्दी उठता, बगीचे में पानी देता, रसोई में मदद करता और आश्रम की सफाई में हात बंटाता. एक दिन जब वह बगीचे में काम कर रहा था, गुरुजी वहाँ आए, उन्होंने देखा कि अमर बड़े ध्यान से पौधों की देखभाल कर रहा है. गुरुजी ने कहा, अमर, तुम इतने ध्यान से यह काम क्यों कर रहे हो? अमर ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, गुर जी ने आगे कहा, हर कार्य, हर विचार एक बीच की तरह होता है, अगर हम अच्छे कर्म करते हैं, अच्छे विचार रखते हैं, तो हमारे जीवन में अच्छाई ही फलेगी फूलेगी. अमर ने सोचा, क्या यही वज़य है कि मैं अपने पिछले जीवन में इतना असंतु है, हमारे विचारों, हमारी भावनाओं, हमारे इरादों से भी जुड़ा है. उन्होंने एक पौधे की ओर इशारा किया और कहा, देखो, इस पौधे को पानी देना एक कर्म है, लेकिन अगर तुम इसे प्यार और देखभाल के साथ पानी दोगे, तो इसका प्रभाव अ गुरुजी ने आगे कहा, कर्म का एक और पहलू है, कर्मयोग इसका मतलब है, कर्म करो, लेकिन फल की चिंता मत करो, अपना कर्तव्य पूरी इमानदारी और समर्पण से करो, लेकिन परिणाम के बारे में चिंता मत करो, अमर ने पूछा, लेकिन गुरुजी, अगर हम पर या वह है, जो तुम्हें अन्दर से संतुष्ट देता है, जब तुम अपना कर्म पूरे समर्पण से करोगे, तो सफलता अपने आप आयेगी, लेकिन अगर तुम सिर्फ परिणाम के बारे में सोचोगे, तो तुम वर्तमान खशण का आनंद खोदोगे। उस दिन के बा� उसे अब हर काम में आनंद मिलने लगा था। उसने पाया कि जब वह परिणाम की चिंता छोड़कर सिर्फ अपने कर्तव्य पर ध्यान देता है, तो उसका मन शांत रहता है। एक शाम, जब वह अपने कमरे में बैठा था, उसने अपनी डायरी निकाली और लिखा, आज मै एक अलग ही संतोष मिलता है। शायद यही सची सफलता है। अमर को लगा जैसे उसके जीवन में एक नया अध्याय शुरू हो रहा है, लेकिन उसे नहीं पता था कि आगे उसे और क्या-क्या सीखने को मिलेगा। हैश-हैश अध्याय फाइव संबंधों का महत्व कुछ दिन बीट गए। अमर अब आश्रम के जीवन में पूरी तरह से घुल मिल गया था। एक दिन जब वह बगीचे में काम कर रहा था, उसने देखा कि एक नया व्यक्ति आश्रम में आया है। यह व्यक्ति लगभग � गुरुजी ने कहा, उसका नाम राजीव है, वह बहुत परिशान है, उसकी पत्नी से उसका तलाक हो गया है और अब वह अपने बच्चों से भी दूर है। अमर को राजीव के लिए सहानुभूती महसूस हुई, उसने सोचा कि वह कैसे राजीव की मदद कर सकता है। अग मैं ज्यादा पैसा कमाऊंगा तो मेरा परिवार खुश रहेगा, लेकिन मैं यह भूल गया कि उन्हें मेरे समय और प्यार की ज़रूरत थी। अमर ने ध्यान से सुना, उसे अपना पुराना जीवन याद आया, जहां वह भी लगातार काम में डूबा रहता था। उस शाम के लिए अपने रिष्टों को नजर अंदाज कर देते हैं। अमर ने पूछा, लेकिन गुरुजी, क्या सफलता और अच्छे संबंध दोनों को एक साथ नहीं रखा जा सकता। गुरुजी मुस्कुराए, विल्कुल रखा जा सकता है अमर, लेकिन इसके लिए संतुलन की समय बिठाना शुरू किया। वे साथ में ध्यान लगाते, बगीचे में काम करते। धीरे धीरे राजीव खुलने लगा। एक दिन राजीव ने कहा, पता है अमर, मुझे लगता है कि मैंने अपने परिवार से माफी मांगनी चाहिए। मैंने उन्हें बहुत नजर अंदा जब वह लोटा, तो उसके चेहरे पर एक नई उम्मीद थी। अमर ने इस बारे में गुरुजी से बात की। गुरुजी ने कहा, देखो अमर, यही है संवंधों की टाकत। जब हम दूसरों के साथ जुड़ते हैं, उनकी परवाह करते हैं, तो हमारा अपना जीवन भी सम जीवन की याद आई, जहां वह हमेशा दूसरों को खुश करने की कोशिश में लगा रहता था, लेकिन खुद कभी संतुष्ट नहीं था। अगले कुछ दिनों में, अमर ने अपने आप पर ध्यान देना शुरू किया। वह अपने विचारों, अपनी भावनाओं को समझ करना चाहता हूँ, उनसे बात करना चाहता हूँ। अमर ने मुस्कुरा कर कहा, ये बहुत अच्छी बात है राजीव, मुझे यकीन है कि तुम्हारा परिवार भी तुम्हारा इंतिजार कर रहा होगा। उस शाम जब राजीव जाने की तैयारी कर रहा था, अमर ने उसे परिवार हो, दोस्त हो या फिर अजनबी, हर संबंद हमें कुछ न कुछ सिखाता है, हमें बढ़ने में मदद करता है। अमर ने महसूस किया कि उसके अंदर कुछ बदल रहा है। वह अब अपने आसपास के लोगों को एक नई नजर से देख रहा था। उसे लगा जैसे ह और सबसे महत्वपूर्ण संबंध है अपने आप से। जब हम खुद से प्यार करते हैं, तब हम दूसरों से भी सच्चा प्यार कर पाते हैं। अमर को लगा जैसे उसके जीवन का एक और पन्ना पलट गया है। उसे अब अपने जीवन में एक नया उद्देश्य मिल गया था। ना सिर्फ अपने लिए जीना बलकि दूसरों के लिए भी। हैश हैश अध्याय 6 परिवर्तन की शक्ति दिन बीठ ते गए अमर ने महसूस किया कि वह अब एक अलग इंसान बन चुका है। उसके अंदर एक नई शांति थी एक नया आत्मविश्वास था। एक दिन जब वह गुरुजी के साथ बैठा था उसने कहा गुरुजी मुझे लगता है कि मैं अब वापस जाने के लि� उसे अपने रोजमर्रा के जीवन में उतारना होगा। अमर ने गंभीरता से सिर हिलाया। मैं समझता हूँ गुरुजी मैं पूरी कोशिश करूँगा। गुरुजी ने कहा अमर एक आखिरी बात याद रखना परिवर्तन की शक्ती तुम्हारे अंदर है। तुम अपने � परिवर्तन की शक्ती तुम्हारे आखिरी बात रखना परिवर्तन की शक्ती तुम्हारे आखिरी बात रखना परिवर्तन की शक्ती तुम्हारे आखिरी बात रखना परिवर्तन की शक्ती तुम्हारे आखिरी बात रखना परिवर्तन की शक्ती तुम्हारे आखिरी बात � परिवर्तन की शक्ती तुम्हारे आखिरी बात रखना परिवर्तन की शक्ती तुम्हारे आखिरी बात रखना परिवर्तन की शक्ती तुम्हारे आखिरी बात रखना परिवर्तन की शक्ती तुम्हारे आखिरी बात रखना परिवर्तन की शक्ती तुम्हारे आखिरी बात � क्या हम इस बारे में बात कर सकते हैं? जैसे जैसे वह अपने पुराने जीवन में लोट रहा था, अमर ने महसूस किया कि हर चीज वैसी ही थी, लेकिन फिर भी कुछ बदल गया था. वह बदल गया था. उसने तै किया कि वह अपने जीवन में जो कुछ भी सीखा है, उससे अपने काम में, अपने रिश्टों में, हर जगह लागू करेगा. वह जानता था कि ये आसान नहीं होगा, लेकिन वह तैयार था. अपने घर पहुँचते ही, उसने अपने माता पिता को गले लगाया. उसने उनसे कहा, मम्मी पापा, मैंने आपको बहुत मिस किया, मुझे माफ कर दीजिये कि मैं इतने दिनों तक दूर रहा. उसके माता पिता की आँखों में आँसू थे. उन्होंने कहा, बेटा, तुम वापस आ गए, यही हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी है. उस रात, अमर ने अपनी डाइरी में लिखा, आज एक नई शुरुवात है, मैं जानता हूं कि मेरे सामने कई चुनौतियां होंगी, लेकिन मैं अब डरता नहीं हूं, मैं जानता हूं कि मेरे अंदर परिवर्तन की शक्ती है, मैं अपने जीवन को बदलूंगा और इस दुनिया को भी थोड़ा बहतर बनाने की कोशिश करूंगा. यह मेरी यात्रा है, मेरी आत्मा की यात्रा. और इस तरह, अमर के जीवन का एक नया अध्याय शुरू हुआ, एक ऐसा अध्याय जो उसे अपने सपनों की ओर ले जाएगा, जो उसे अपने सच्चे उद्धेश की ओर ले जाएगा. यह थी अमर की कहानी, एक साधारन युवक की असाधारन यात्रा, एक ऐसी यात्रा जो बाहर से शुरू हुई और अंदर तक पहुंची. अमर की कहानी हम सभी की कहानी है. हम सभी जीवन में कभी ना कभी उन सवालों से गुजरते हैं, जो अमर के मन में थे. हम सभी कभी ना कभी उस शांती की तलाश करते हैं, जो अमर ने पाई. इस कहानी से हमें कई महतुपूर्ण सबक मिलते हैं. अमर ने सीखा कि जीवन में सबसे महतुपूर्ण यात्रा है अपने आप को जानने की यात्रा. जब हम अपने आप को समझते हैं, तब हम दुनिया को बहतर तरीके से समझ पाते हैं. वर्तमान में जीने का महत्व. गुरु जी ने अमर को सिखाया कि जीवन इसी खण में है अमर ने सीखा कि हमारे हर कार्य, हर विचार का परिणाम होता है. जब हम अच्छे कर्म करते हैं, तो हमारे जीवन में अच्छाई आती है. 4. संबंधों का महत्व. राजीव की कहानी से अमर ने सीखा कि जीवन में रिष्टे बहुत महत्वपूर्ण हैं. हमें अपने प्रिय जनों के लिए समय निकालना चाहिए और उनकी कद्र करनी चाहिए. 5. परिवर्तन की शक्ती. अन्त में अमर ने समझा कि परिवर्तन की शक्ती हमारे अंदर है. हम अपने विचारों और कर्मों से न सिर्फ अपना जीवन बदल सकते हैं, बलकि दुनिया को भी बहतर बना सकते हैं. प्रिय श्रोताओं, अमर की कहानी यहीं खत्म नहीं होती. अपने काम में, अपने रिश्टों में, अपने हर कदम पर इस नए द्रिश्टिकोण को लागू करेगा. और यही तो असली चुनौती है, है न? सिर्फ ग्यान पाना काफी नहीं है. उस ग्यान को जीवन में उतारना, उसे हर दिन जीना, यही असली साधना है. तो आएये हर कशन हमें बदलने का, बेहतर बनने का मौका देता है. हम सभी के अंदर वह शक्ती है, जो अमर ने पाई. परिवर्टन की शक्ती, प्रेम की शक्ती, जीवन को पूरी तरह से जीने की शक्ती. तो आएये, हम सब अपनी अपनी आत्मा की यात्रा पर निकले. एक � एसी यात्रा, जो हमें हमारे सवालों के जवाब देती है, जो हमें वह शांती देती है, जिसकी हम तलाश करते हैं. इस कहानी के साथ, मैं आप सभी को एक सुन्दर, शांति पून और सार्थक जीवन की शुब कामनाएं देता हूं. याद रखें, आप सभी के अंदर एक अ