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You जिन्दगी यूं भी गुजर ही जाते क्यों तेरा रह गुजर याद आया? क्यों होता है अक्सर खालीपन का एहसास? क्या है जो निरंतर भरने पर भी खाली रह जाता है? क्या है वो जो भागता ही रहता है? कल्पनाओं के संसार में निरंतर लेकिन चैन नहीं पाता प्यार, परिवार, संसार, धन, प्रतिष्ठा सभी कुछ पा लेने के बाद भी आनंद क्यों नहीं मिलता? शांती क्यों नहीं महसूस होती? क्या है योई जो सब कुछ मिल जाने पर भी फीका लगने रहता है? दोस्तों, इसी एहसास को, इसी फीलिंग्स को आध्यात्मिक चेतना कहते हैं जो सत्व, चित, और आनंद की ओर प्रेरित करता रहता है नमुरागवाई दोस्तों, रेन्बु हीलिंग में आपका स्वागत है प्रस्थोत है, हारे को हरी नाम है एपिसोड 5 दोस्तों, इस एपिसोड को मैं कहानी के माध्यम से कहने जा रही हूँ जिसके मुख्य पात्र है कृष्णकली कृष्णकली सुभाँ चार बजे उठ जाती है थोड़ी देर, एकांत में ध्यान लगाने की कोशिश करती है महसूस करती है अपनी आती जाती सांसो को पहुत से विचार उसके साथ साथ सह यात्री बन कर चलते रहते हैं कुछ विचार पहुत बेचैन कर देते हैं, कुछ दर्द साथ लाते हैं कुछ उसे ग्लानी से भर देते हैं, तो कुछ होटो पर एक मीथी मुस्कान दे जाते हैं सांसे वैसे ही यात्रा करती रहती हैं, बिना ठके, बिना रुके निरंतर, प्रकृति से प्रलय तक नासिका शिद्र से प्रवेश करती और नाभी में जाकर भस्म हो जाती है आज फिर जल्दी उठ गई, मा की आवाज से कृष्णकली की तंद्रा तूटी, पाँच बज गए, नीचे बगीचे से फूल तोड़ कर लिया कृष्णकली फूल लाने चली जाती है, फूल तोड़ती जाती और कोई गीत गुन गुना रही है ओ वापरे फिर से तरा दिया, कृष्णकली के हाथ से फूलों भरी डलिया गिर जाती है बंटी कितनी बार कहा है डराया मत कर, तू इतनी सुबा क्यों उठ जाता है तुम्हारे गीत से उठ जाता हूँ, बंटी ने फूलों की डलिया कृष्णकली के ओर बढ़ाते हुए कहा, चल जूटा, मैं तो इतना धीरे धीरे गा रही थी मैं तो धीरे से गाया, धीरे से कहा और चुपके से सोचा हुआ भी सब कुछ सुन लेता हूँ, जान लेता हूँ, बड़ा आया कृष्णा जल्दी उपर आ, पूजा के लिए देल हो जाएगी, माने आवाज दे चल बंटी, अब तू जा यहां से, माने देख लिया तो फिर नाराज हो जाएगी, ठीक है, कल सुबा हलवा खिलाना, नहीं तो मैं नहीं जाओंगा, मां दादेगी तब भी नहीं ठीक है बई, अब तू जा, यह रोज-रोज नए-नए फर्माईश तुझे सूझती कैसे है, वो भी इतनी सोबा-सुबा, बंटी जोर से हसा और चला गया, कृष्ण कली उसका जाना देखती रहती है, मंत्र मुक्त से कृष्णा, माने फिरसे पुकर, आई मा, कृष्ण कली तेजी से फूलों की डलिया लेकर, उपर के मन्जिल पर पहुँचती है, माने आज का भूग बना कर रख दिया है, खीड, दीब जल गये है, धूप की दिव्य सुगन से पूरा वातावरण सराबोर हो गया है, जल्दी नहा कर नीचिया, फिर कॉलेज के लिए निकलना भी होगा, कृष्ण कली नहाने जले जाती है, माने बोलना प्रारंब किया, हे कृष्ण करणा सिंधो, दीन बंधो जगतपते, गूपीश गूपीकावल्लव, राधा कांत नमोस्तुते, शेज अगले एपिसोड में, नमोरा क्वाई.