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आज हम जानेगे किर्षन का व्यक्तित्व। किस के व्यक्तित्व में आज के योग के लिए चाक्या विश्यस्ताय है और उनके व्यक्तित्व का क्या महत्व हो सकता है, इस पर हम परकास डालेंगे। किर्षन का व्यक्तित्व बहुत अनूठा है। अनूठेपन की पहली बात तो यह है कि किर्षने हुए तो अतीप में लेकिन है भविश्य के। मनुष्य अभी भी इस योग नहीं हो पाया है कि किर्षन का समस्यमायक बन सके। अभी भी किर्षन मनुष्य के समस्यमाहर है सबसे बड़ा कारण तो यह है कि किर्षन अकेले ही ऐसे व्यक्ति है जो धर्म की परम्द घहराईयों और उचाईयों पर होकर भी गंभीर नहीं है। उदास नहीं है। रोते हुए नहीं है। सधारंता। संत का लक्षन ही रोता हुआ होना है। जिंद्गी से उदास। हार किर्षन को छोड़ दे तो अतीत का सारा धर्म उदास आशू से भरा हुआ था। हस्ता हुआ धर्म मर गया है। और पुराना ईश्वर जिसे हम अब तक ईश्वर समझते थे जो हमारी सदार्णा थी। इश्वर की वो भी मर गयी। जीज़स के संवन्द में कहा जाता है कि � उनका सरीर ही हम दुखी चित लोग को बहुत आकरशन कारण बन गया। महाविर या बुद्ध बहुत गहरे अत्थों में इस जीवन के विरोदी है। कोई और जीवन है परलोक में। कोई मोक्ष है। उससे पक्चपाती है। समस धर्मों ने दो हिस्सो कर रखे हैं। जीवन के एक वर्थ जो सिर्कार योगय है और वर्थ जो इंकार योगय है। किष्णा के लिए ही इस समग जीवन को पूरा ही सुरिकार कर लेते हैं। जीवन के समग तता की सर्वकृति उनके वेक्तित में फलित हुई है। इसलिए इस देश ने और सभी अफतारों को अशंकिक अफतार कहा है। किष्ण को पूरा अफतार कहा है। राम भी अंस है परमात्मा के लिए लेकिन किष्ण पूरे ही परमात्मा है। और यह कहने का यह सोचने का ऐसा समझने का कारण है। वह कारण यह है कि किष्ण ने सभी कुछ आत्म साथ कर लिया। अल्बर्श सिर्च्चर ने भारतिय धर्म के अलोचना में एक बड़ी कीमत की बात की और वह यह है कि भारत का धर्म जीवन निक्षेतर लाइफ नेगिटी। यह है। यह बात बहुत दूर सच है कि यदि किष्ण को भुला लिया जाये और यदि किष्ण को भी बिचार में नहीं कहा बाते। लेकिन किष्ण की कोई व्यापक चाया भी हमारे चित पर नहीं पड़ी है। वह अकेले दुख के एक महासागर में नासते हुए एक चोटे से दूइप है। यह ऐसा हम समझें कि उदास और निशेव और दमन और निन्दा के बड़े मनुसल में एक बहुत चोटे से नास्ते हुए मरुल गया। वह हमारे पूरी जीवन की धारारख को नहीं प्रभावित कर पाए। हम ही इस योग्य ना थें हम उन्हें आत्मस सातना कर पाए। मनुश्य का जन मन अब तक तोड़ कर सोचता रहा है। द्वित्वक करके सोचता रहा है। सरीर को इंकार करना है। आत्मा को शुकार करना है। तो आत्मा और सरीर को लड़ा देना है। परलोक के शुकार करना है। इहलोक को इंकार करना है। तो इहलोक और परलोक को लड� हो जाएगा। क्योंकि जीवन के सारे रस, स्रोत और सार, स्वास्त और जीवन, कसार, संगीत और सारी सम्हेदस्नाय सरीर से आ रही है। सरीर जो धर्म इंकार कर देगा, वह पिट वर्ण हो जाएगा। लक्त सुनने हो जाएगा। उस पर से लाली खो जाएगे। वह पीले पत्ते की तरह सुखा हुआ धर्म होगा। उस धर्म की मानिता भी उनके मन में गहरी बैठे, वे भी पीले पत्ते की तरह गिरने की तयारी में सलंग बढ़ने के लिए उत्सुक और तयार हो जाएगे। किष्ण अकेले ही जो सरीर को उसकी समस्त में सुखार कर लेते हैं, उसकी टोटलिटी में यह एक आयाम मैं नहीं समस्त भी आयाम में सच है। सारे किष्ण को छोड़कर, किष्ण को छोड़कर और पूरे मनुस्तेता के इस थिहास में, जर्युस्त्र एक दूसरा आदमी है, सभी बच्चे रोते हैं, एक बच्चा सिर्फ मनुस्ते जाती के इतिहास में जर्म लेकर हसा, यह सूचक है। यह सूचक है। इस बात का अभी हस्ते हुई मनुस्तेता पैदे नहीं हो पाती, और किष्ण तो हस्ती हुई मनुस्तेता को ही सिवकार को हो जाते हैं। इसलिए किष्ण का बहुत भविष्य है, फ्राइट पूर्ब, धर्म की जो धुनियम भी थी, वह फ्राइट पर चात नहीं हो सकती है। एक बड़ी क्रांति घटित हो गई है, और एक बड़ी दरार पर गई है, मनुस्ते की चेतना में हम जहां थे फ्राइट के पहले, अब लेनी चाहिए। पुराना धर्म सिखाता था कि आदमी को दमन और संप्रेशन काम है, क्रोध है, लोब है, मोह है, सभी को दमाना है, और नश्ट कर देना है, और तभी आत्मा उपलब्द होगी, तभी परमात्मा उपलब्द होगे। यह लडाय बहुत लंभी चली, इस ल� लोग बिना परमात्मा को पाय बड़े हैं, जर्वी कहीं कोई बुनियाद भूल थी। यह ऐसा ही जैसा कि कोई माली करोध हचार पोधे लगाया, और एक पोधा में फूल आ गया, और फिर हम अस माली के सास्त को मान चलते हैं। और हम कहें कि, देखो, एक पोधे में फूल � यह माली से किसी तरह बच गया होगा, पोधा इसलिए आ गया है। क्योंकि माली का प्रमान तो बागी पचास करोध पोधे, जिनमें फूल नहीं आते, पत्ते नहीं लगते, सुखे ढूंड रहे जाते हैं। एक बुद्ध, एक महावीर, एक क्राइश, अगर परमातमा को अपलब्द हो जाते हैं धर्मों के बावजूद भी, तो यह कोई धर्म की सफलता का परमान नहीं है। धर्मों की सफलता का परमान तो तब होगा, माली तो तब सफल समझा जाएगा, जब पचास करोध पोधे में लगवग और एक में ना लगे तो चमा योगे है, कहा जा सकेगा कि यह पौधा की गलती हो गई, इसमें माली की गलती नहीं हो सकती, पौधा बच गया ह है, दमन मनुष्य को आत्महिन्सा में डाल देता है, आद्वी अपने से ही अपना डालने लगे तो सिर्फ नश्ण हो सकता है,

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