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Talking_To_Myself

Talking_To_Myself

FAISAL KHANFAISAL KHAN

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दिन मेरे तुझसे चले, राते भी तुझसे ढले, है वाक्त तेरे हाद में तुही शहर है मेरा, तुझ में ही घर है मेरा, रहता है तेरे साथ में बात दिल पे आती है, तो याद जीत जाती है, आसम के राथ हमें किताबे धीख जाती है वक्त एक वहर था, जो कुछ गजर गया है, अब ये बता दे क्या माहबत तेरी बीठ जाती है तुमने हमसे मुझके आसमा गिरा दिया, तुरी वफाकत तुने मुझको ये अच्छा सिरा दिया, तुमसे मिलके ना मिला, फिर तुम किस से मिल गई हो इशके नाम पे तुने मुझे जैर किला दिया तुन क्या बता है, क्या हुआ है इसका काशे, तेरे वासे ये दिल दर्यारा करता है, हम खुद बीक हो गए, हम बग बीड हो गए, तुमकी ये जीदे मुहमबत का रातों पे रिथ्ता हो गए परके मुझे वादे फिर वो पीछे गड़ गई, देखे कम मुझे वो सिंदगी पिगड़ गई, उसने देखा एक लमे को पीछे मुझे मुझे मुझे मैंने करनी साही बात पर बात पढ़ गई, तुल शिकस्ता हो गया हूँ, सासे जैसे चम गई है, तुम और एक हम के आ जब तुम बाताओं से दिल गए हो, कैसे पैछानूँगा तुझे मैं इस बजार मैं, ओ जानप हो गया है तुम दला की आड मैं

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TitleTalking_To_Myself
AuthorFAISAL KHAN
CategoryVoice Over
Duration02:10
FormatAUDIO/WAV
Bitrate784.094 kbps
Size12.82MB
Uploaded26 May 2024

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